मेरी साख उठ गई
लाहौरसे एक मित्रने एक गुमनाम पत्र भेजा है । वह दहला देनेवाला पत्र[१] इस प्रकार है :
मंगलवार ११ तारीखको मैंने 'ट्रिब्यून' में अखिल भारतीय कांग्रेसकी कार्य समितिकी आपत्कालीन बैठकमें पास किये गये प्रस्ताव पढ़े ।...
लोगों की राय यह है कि अब आपने अपना मुंह मोड़ लिया है। आपका चित्त अस्थिर हो गया है। अब वे बिना किसी हिचकिचाहटके सरकारके साथ सहयोग करेंगे और युवराजके स्वागत समारोहमें शरीक होंगे। ...
कुछ व्यापारियोंका यह खयाल हो गया है कि आपने शराबकी दुकानों तथा विदेशी कपड़ोंपर से सभी प्रतिबन्ध उठा लिये हैं ।
सच कहें तो लाहौर में तमाम लोग बैठकें कर रहे हैं...और वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके इस कदमकी निन्दा कर रहे हैं ।
मैं आपसे अपनी ओरसे ये सवाल पूछता हूँ ।
( १ ) क्या आप इस आन्दोलनका नेतृत्व छोड़ देंगे ? यदि हाँ, तो क्यों ?
(२) कृपया बताइए कि आपने तमाम प्रान्तीय कमेटियोंको ऐसी सूचनाएँ क्यों दी हैं? क्या आपने पण्डित मालवीयको गोलमेज सम्मेलनके लिए यह मौका दिया है, जिससे कोई निपटारा हो जाये; या पण्डितजी इस बातपर तैयार हो गये हैं कि यदि सरकार अपना वचन पूरा न करे, तो वे आपके आन्दोलन में शामिल हो जायेंगे ?
(३) मान लीजिए कि कोई ऐसा समझौता होता हो कि पंजाब और खिलाफतके दुःख दूर कर दिये जायें और स्वराज्यके सम्बन्ध में सरकार सिर्फ और अधिक शासन-सुधार कर दे, तो क्या इससे आप सन्तुष्ट हो जायेंगे अथवा जबतक पूर्ण औपनिवेशिक स्वराज्य न मिले, आप अपनी हलचलें जारी रखेंगे ?
(४) फर्ज कीजिए, कोई फैसला न हो पाया। तो क्या पण्डित मालवीय तथा दूसरे तमाम सज्जन, जो इस सम्मेलनसे सम्बन्धित हैं, आपके पक्षमें आ मिलेंगे या इसी तरह तटस्थ बने रहेंगे ?
(५) यदि कोई फैसला न हो पाया तो क्या आप यदि हिंसाका भय हो तो, सविनय अवज्ञाका खयाल छोड़ देंगे ?
(६) क्या अब आपका यह इरादा है कि मौजूदा स्वयंसेवक सेना भंग कर दी जाये और सिर्फ वही लोग भरती किये जायें जो सूत कातना जानते हों और हाथ-कती तथा हाथ-बुनी खादी पहनते हों ?
- ↑ यहाँ केवल कुछ अंश ही दिये जा रहे हैं ।