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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आदर्श पिता और आदर्श पुत्र

कुछ सप्ताह पहले मैंने तीनों मालवीयोंके जेल जाने के सम्बन्धमें कुछ लिखा था और बतलाया था कि गोविन्द मालवीयने अपने अन्तःकरणकी आवाज अनसुनी न कर पानेपर किस विनम्रता और अपने पिता के प्रति किस भक्ति-भावसे, पण्डितजीके न चाहने पर भी जेलयात्रा की थी।[१]अब गोविन्दने मुझे पण्डितजीके उस पत्रकी एक प्रति भेजी है, जो उन्होंने गोविन्दके नाम भेजा था । पाठकोंके लिए उसका अनुवाद प्रस्तुत है । मूल पत्र हिन्दीमें ही है :

गोविन्दको आशीर्वाद । ईश्वर तुम्हें चिरायु करे ।
तुम्हारा पत्र मिला । अन्यथा व्यस्त होनेके कारण मैं इससे पहले उसका उत्तर नहीं दे पाया। में तुमसे नाराज नहीं हूँ । मनमें ऐसी कोई आशंका रखकर दुःखी मत हो । हाँ, माडर्न हाईस्कूलपर धरना देना मुझे पसन्द नहीं आया । स्कूल कोई ऐसा स्थान तो है नहीं जहाँ पाप पलता हो या जो सामाजिक जीवन में विष घोलता हो कि बच्चोंको वहाँ जानेसे रोकने के लिए धरना देना पड़े। परन्तु तुम्हारा और कृष्णका सार्वजनिक सभामें जाना और उपस्थित जनों को कांग्रेसका सन्देश सुनाना सर्वथा उचित था । सरकारने जो नीति अपनाई है वह बिलकुल बेजा है। आशा है, वह नीति बदली जायेगी । तुम बिलकुल प्रसन्न रहो। तुमने अपनी गिरफ्तारीके बारेमें श्री गांधीको जो पत्र लिखा था वह उन्होंने मेरे पास भेज दिया है।

उपर्युक्त पत्र १३ जनवरीका है ।

पण्डितजीने इसी तारीखको एक पत्र कृष्णकान्त मालवीयको भेजा था, जो इस प्रकार है :

खेद है कि इधर कुछ दिनों में इतना अधिक व्यस्त रहा कि तुम्हें और गोविन्दको पत्र लिख ही नहीं सका। इस समय में रातको ग्यारह बजे पत्र लिखने बैठा हूँ ।
सभामें तुम्हारा बोलना बिलकुल ठीक था। एसी किसी आशंकासे दुःखी मत रहना कि मैंने तुम्हारे उस कामको पसन्द नहीं किया । मैंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (बल्कि कहना चाहिए विषय-निर्धारिणी समिति) की अहमदाबादकी बैठकमें कहा था कि यदि सरकार कांग्रेस स्वयंसेवक-संस्थाओंको गैर-कानूनी" करार देनेकी अधिसूचना वापस नहीं लेती तो ऐसे स्वयंसेवकों- का उसका उल्लंघन करके जेल जाना बिलकुल उचित होगा ।
मैंने अन्य कुछ लोगोंके साथ मिलकर जो सम्मेलन बुलाया है उसकी बैठक कल होगी। साथके पत्रसे तुम्हें सम्मेलन के उद्देश्यका पता चल जायेगा । श्री
  1. देखिए “टिप्पणियाँ ", १२-१-१९२२ का उप-शीर्षक "मालवीय परिवार " ।