पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/४८८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री वेंकटप्प्याने अभी कुछ ही दिन पहले मुझे पत्र लिखते हुए यह आशंका व्यक्त की थी कि हो सकता है कि सरकार श्री रेड्डीके मुकदमेको आगे न बढ़ाये, क्योंकि वे अपने जिले के एक सबसे प्रभावशाली नेता हैं। उन्हें डर था कि अगर यह मुकदमा उठा लिया गया तो जनताका बढ़ता हुआ जोश ठंडा पड़ जा सकता है । लेकिन सरकारने श्री वैंकटपप्याकी आशंकाको दूर कर दिया है, और श्री रेड्डीके कारा- वाससे नेलौरमें ऐसी जागृति आ गई है वैसी पहले कभी यहाँ नहीं थी ।

अध्यक्षको सिर्फ छः महीनेकी सादी कैद !

मौलाना आजादको बहुत कम समयकी सजा हुई है। इसपर खुद मौलाना साहब तथा उनकी बेगम साहिबाने इस बातकी शिकायत की है कि बस, इतने कम समयकी सजा । यह तो बहुत ही नाकाफी है। अब इस हालत में कांग्रेस के अध्यक्ष[१] और उनकी सहधर्मिणीको यह सुननेपर क्या महसूस हुआ होगा कि श्री ससमलके साथ उन्हें छः महीने की सादी कैद की सजा दी गई है। यदि ऐसी ही प्रभावहीन सजा देना अभीष्ट था, तो सरकार ही बतला सकती है कि अभियोग चलाने और बार-बार फैसले मुल्तवी रखने की क्या आवश्यकता थी। कुछ विश्वसनीय सूत्रोंसे यह खबर भी सुनने को मिली है कि सरकार मौलाना और देशबन्धु दोनोंको छोड़ देनेका कोई मौका ताक रही है । एक और भी खबर मिली है जो कि विश्वस्त सूत्रसे आई मानी जाती है; पर मैं उसे प्रकट नहीं कर सकता, और पाठकोंके लिए उसका कोई महत्त्व भी नहीं है । हमें तो, और अध्यक्षको भी, जैसा आ पड़े उसीको खुशी-खुशी मंजूर कर लेना चाहिए । कुछ लोग मुझे बड़े कटु पत्र भेज रहे हैं। वे मुझपर भोलेपन, संगदिली, कमजोरदिली तथा इसी तरह की दूसरी कमजोरियोंका इलजाम लगा रहे हैं। कुछ सज्जन कहते हैं कि मैंने जेल यात्रियों के महती उद्देश्योंकी बलि चढ़ा दी है । कुछ लोगोंका कथन है कि मैंने कांग्रेस के अध्यक्ष महोदय के साथ बेईमानी की है और असहयोगके सभी आदर्शोंको धता बतला दी है । परन्तु सौभाग्यवश कितने ही वर्षोंकी सार्वजनिक सेवाओंकी बदौलत मेरी चमड़ी काफी मोटी हो गई है और ये तीर उसे बंध नहीं पाते । परन्तु में इन तमाम अधीर पत्र-लेखकों को यकीन दिलाता हूँ कि इन प्रस्तावों द्वारा असहयोग - सिद्धान्तका किंचिन्मात्र त्याग नहीं किया गया है। बल्कि इसके विपरीत, प्रकृतिकी ओरसे चेतावनियाँ होते हुए भी, सार्वजनिक सविनय अवज्ञा आन्दोलनके स्थगनसे मुँह मोड़ना असहयोगके मूल- भूत सिद्धान्तका पूर्णरूप से त्याग करना होता । कैदियोंको छोड़ देने की बात तो, जब कि वह राष्ट्रीय सम्मानका प्रश्न हो गया, मैंने ही जान-बूझकर पेश की थी; क्योंकि त्रिविध लक्ष्य - स्वराज्य, खिलाफत और पंजाब की शीघ्र प्राप्ति के प्रश्नने बदलकर त्रिविध स्वातन्त्र्य - भाषण, लेखन और सम्मेलन की शीघ्र प्राप्ति के प्रश्नका रूप ले लिया था, और उस हालत में कैदियोंको छोड़ देनेकी माँग करना स्वाभाविक हो गया था । लेकिन चौरीचौराने एक दूसरा ही प्रश्न उपस्थित कर दिया है, अर्थात् घोर प्रायश्चित्त और आत्मशुद्धिका कठोरतम प्रयास । और इस प्रायश्चित्तजन्य आत्मशुद्धिके लिए हमें कुछ समयतक अपनी कितनी ही हलचलें, जिनकी बदौलत राष्ट्रमें नवजीवनका संचार

  1. चित्तरंजन दास, मनोनीत अध्यक्ष ।