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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूसरे, मेरा अनुभव यह कहता है कि जब किसी विशेष कामके लिए कोई एजेंसी स्थापित की जाये तो कुछ हदतक उसमें स्वतन्त्र दिलचस्पी खत्म हो जाती है और हमारे विदेश-स्थित कार्यालय जो कुछ प्रचार करते हैं उसे अमुक पक्षका प्रचार माना जाता है और उसे कोई महत्व नहीं दिया जाता ।

तीसरी बात यह कि इस प्रकारकी एजेंसियोंपर कांग्रेस काफी कठोर अंकुश नहीं रख सकेगी और संघर्ष के बारेमें गलत सूचना और गलत विचारोंके अधिकृत प्रसारणका बहुत बड़ा खतरा बना रहेगा ।

चौथी बात यह कि वर्तमान कालमें किसी उपयोगी व्यक्तिको विदेशोंमें मात्र समाचार प्रसारण के कामके लिए भारत के बाहर भेज पाना सम्भव नहीं है, क्योंकि देश के अन्दर काम करनेके लिए ही ऐसे आदमी बहुत कम हैं ।

इसलिए मेरी राय यह है कि कांग्रेसके बुलेटिनोंके प्रकाशन- कार्यकी व्यवस्था कुछ और अच्छी बनानी चाहिए, और यदि जरूरी हो तो इसी कामके लिए एक विशेष सम्पादक रख लिया जाये और संसारकी मुख्य समाचार एजेंसियोंको कांग्रेस बुलेटिन नियमित रूपसे भेजा जाया करे । उसको यह निर्देश दे देना चाहिए कि वह ऐसे समाचारपत्रों अथवा समाचार वितरण केन्द्रोंसे जो भारत सम्बन्धी प्रश्नोंके बारेमें दिलचस्पी लेते हों, पत्र-व्यवहार करने लगे ।

दक्षिण आफ्रिकामें मैंने जिन समाचारपत्रोंका सम्पादन किया है उस अनुभवके आधारपर मेरी यह निश्चित राय है कि कांग्रेसका कार्य जितना ठोस होगा और उसके सदस्योंका, स्त्री हों या पुरुष, कष्ट सहन जितना ही अधिक होगा उतना ही ज्यादा हमारे आन्दोलनका बिना विशेष श्रम किये प्रचार होगा । मुझे 'यंग इंडिया ' के प्रकाशन के सम्बन्ध में रोज-रोज जो पत्रादि संसारके सभी भागोंसे मिलते रहते हैं उनसे मैं देखता हूँ कि भारतीय मामलोंमें इतनी अधिक दिलचस्पी पहले कभी नहीं ली गई थी, जितनी आज ली जा रही है । हमारी यातनाएँ अनुपातमें जितनी ज्यादा बढ़ेंगी उतनी ही लोगोंकी दिलचस्पी बढ़ेगी। इसलिए भारतकी राजनैतिक स्थिति सम्बन्धी समाचारके प्रचारका सबसे अधिक अच्छा तरीका कांग्रेसके कामको और भी शुद्ध बनाना, उसे अच्छी तरह संगठित करना और कष्ट सहनकी भावनाको और भी अधिक मात्रा में जगाना है । इससे न केवल जिज्ञासा तीव्र होती है, वरन् लोग स्थिति के बारेमें असलियत और अन्दरूनी बात समझने के लिए और अधिक उत्सुक हो जाते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ९-३-१९२२

आपका विश्वस्त, मो० क० गांधी