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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो, परन्तु इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि असहयोग आन्दोलनसे सहानुभूति रखनेवाली क्रुद्ध भीड़ने पुलिसके सिपाहियोंकी वहशियाना ढंगसे हत्या की । इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि उस भीड़में राजनीतिक चेतना थी । ऐसी साफ चेतावनीपर ध्यान न देना अपराधपूर्ण काम होता ।

मैं तुम्हें बता दूं कि इस घटना के बाद मेरे लिए कोई चारा नहीं रह गया था । वाइसरायको पत्र[१]भेजते समय मन शंकाओंसे खाली नहीं था, जैसा कि उसकी भाषासे जाहिर है । मद्रासकी कार्रवाइयोंसे भी मैं बहुत अशान्त हुआ था, लेकिन मैंने चेतावनीकी आवाजको दबा दिया। मुझे कलकत्ता, इलाहाबाद और पंजाबसे हिन्दुओं और मुसलमानों के पत्र मिले और ये सभी गोरखपुरकी घटनासे पहले मिले थे । उन्होंने मुझे लिखा था कि सारा दोष सरकारी पक्षका ही नहीं हैं, हमारे लोग आक्रमणकारी, उद्धत, धमकी देनेवाले बनते जा रहे हैं । वे हाथसे निकलते जा रहे हैं और उनका रवैया अहिंसात्मक नहीं है । जहाँ फीरोजपुर जिरकाकी घटना[२]सरकारके लिए अपयश- कारी है, वहाँ हम भी सर्वथा निर्दोष नहीं हैं। हकीमजीने बरेलीकी बाबत शिकायत की। मेरे पास झज्जरके बारेमें बड़ी शिकायतें हैं। शाहजहाँपुरमें भी टाउन हालपर जबरदस्ती कब्जा करनेकी कोशिश की गई। कन्नौजसे तो खुद कांग्रेसके मन्त्रीने तार दिया कि स्वयंसेवक उद्दण्ड हो गये हैं । वे हाईस्कूलपर धरना देकर सोलह वर्षसे छोटे लड़कोंको भी स्कूल जानेसे रोक रहे हैं। गोरखपुरमें छत्तीस हजार स्वयंसेवक भरती किये गये, जिसमें से सौ भी कांग्रेसकी प्रतिज्ञाका पालन नहीं करते। जमना- लालजी मुझे बताते हैं कि कलकत्तामें घोर अव्यवस्था है । स्वयंसेवक विदेशी कपड़े पहनते हैं और अहिंसाकी प्रतिज्ञासे कतई बँधे हुए नहीं हैं । ये सब खबरें और दक्षिणसे इससे भी ज्यादा खबरें मेरे पास पहुँची थीं कि चौरीचौरा के समाचारोंने बारूदमें जबरदस्त चिनगारीका काम किया और आग लग गई। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि अगर यह चीज मुल्तवी न कर दी जाती तो हम अहिंसक संघर्ष के बदले वस्तुतः हिंसक संघर्ष चलाते । बेशक यह सच है कि अहिंसा देशके एक कोने से दूसरे कोनेतक गुलाबके इत्रकी खुशबूकी तरह फैल रही है । परन्तु हिंसाकी दुर्गन्ध अब भी जबरदस्त है और उसकी उपेक्षा करना, या उसके जोरको घटाकर देखना बुद्धिमानी नहीं है । हमारे इस तरह पीछे हटने से उद्देश्य में प्रगति होगी । आन्दोलन अनजाने में सही रास्तेसे हट गया था। अब हम फिर राहपर वापस आ गये हैं और फिरसे सीधे आगे बढ़ सकते हैं । तुम प्रतिकूल स्थितिमें हो, इसलिए घटनाओंको सही रूपमें नहीं देख सकते और मैं अनुकूल स्थितिमें हूँ इसलिए मैं उन्हें सही रूपमें देख सकता हूँ ।

क्या मैं तुम्हें दक्षिण अफ्रिकाका अपना अनुभव बताऊँ ? हमारे पास जेलोंमें सभी तरह की खबरें पहुँचाई जाती थीं। अपने पहले अनुभवके दौरान दो-तीन दिनतक तो मैं चटपटे समाचार सुनकर खुश होता रहा, लेकिन मैंने फौरन समझ लिया कि इस तरह चोरीसे खबरें पाने में मेरा दिलचस्पी लेना बिलकुल व्यर्थ है । मैं कुछ कर नहीं सकता

 
  1. १ फरवरी, १९२२ का ।
  2. २३ दिसम्बर, १९२१ की गोलीबारी ।