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पत्र : जवाहरलाल नेहरूको

  भाटिया लोगोंने देशसेवा करने में कोई कसर नहीं रखी है । धनवान होने के कारण उन्होंने खूब पैसा दिया है। कुछ एक भाटिया बहनें अपना समय देकर बहुत अच्छी देशसेवा कर रही हैं। तथापि धनिक-वर्ग के लिए खादी अपनाना अब भी मुश्किल मालूम हो रहा है। उसका कोई समुचित कारण नहीं है। जिनपर देशसेवाका रंग चढ़ चुका हैं, वे जो सेवा आवश्यक होगी उसे किये बिना न रहेंगे । स्वदेशी अर्थात् चरखा चलाने और खादी पहनने के समान अन्य कोई सेवा नहीं है । यह ऐसा धर्म है जिसका पालन करना आसान है और जिसमें कोई जोखिम भी नहीं है । तथापि उसके परिणाम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । यदि हिन्दुस्तानके अमीर लोग खादी पहननेके धर्मको स्वीकार करें तो इसमें ऐसा कुछ नहीं होगा जिसे विचित्र कहा जाये । अंग्रेजोंका इतिहास साक्षी है कि उन्होंने बाहरसे आनेवाली लेसों आदिका त्याग कर केवल इंग्लैंडमें ही बनने- वाले मोटे कपड़ेसे अनेक वर्षोंतक निर्वाह किया था। उनमें अमीर-उमराव भी शामिल थे। जिसे इस बातकी समझ आ जाये कि खादीसे ही हिन्दकी भुखमरीका नाश होगा, खादीसे ही हिन्दकी गरीब स्त्रियोंकी पवित्रताकी रक्षा हो सकेगी, खादीसे ही अकालका निवारण होगा, क्या वह विदेशी अथवा मिलका कपड़ा पहन सकता है ? मुझे उम्मीद है कि भाटिया भाई-बहन अपनी शिथिलता छोड़कर खादी तथा चरखे के धर्मको सम्पूर्ण रूपसे स्वीकार करेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १९-२-१९२२

१८०. पत्र : जवाहरलाल नेहरूको[१]

बारडोली
१९ फरवरी, १९२२

प्रिय जवाहरलाल,

मुझे मालूम हुआ है कि तुम सबको कार्य समिति के प्रस्तावोंसे[२]भयंकर पीड़ा हुई है । मुझे तुमसे हमदर्दी है और [ तुम्हारे ][३]पिताकी बात सोचकर मेरा दिल टूटता है । उन्हें जी पीड़ा हुई होगी, उसकी मैं स्वयं कल्पना कर सकता हूँ । परन्तु मुझे यह भी महसूस होता है कि यह पत्र अनावश्यक है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि पहले आघात के बाद स्थिति सही तौरपर समझमें आ गई होगी। बेचारे देवदासकी बचपन-भरी नासमझियोंके कारण हमें उद्विग्न नहीं होना चाहिए। यह सर्वथा सम्भव है कि उस गरीब लड़केके पैर उखड़ गये हों और उसका मानसिक सन्तुलन जाता रहा

 
  1. जवाहरलालजी उन दिनों जेलमें थे अतः यह पत्र उनकी बहन सरूप (विजयलक्ष्मी) के जरिये भेजा गया था; देखिए अगला शीर्षक ।
  2. ११ और १२ फरवरीको पास किये प्रस्ताव ।
  3. पण्डित मोतीलाल नेहरू ।