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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बदौलत मैं धनवान बना हूँ उनके विरुद्ध अगर मैं किसी व्यक्तिको भड़काऊँ तो जगत् तथा ईश्वरके प्रति अपराधी ठहरूंगा।" उन्होंने ऐसा ही और भी बहुत-कुछ कहा और मुझे अपने निर्दोष होने का विश्वास दिलाया ।

मैं मानता हूँ कि यदि उन्होंने अपना बचाव किया होता तो वे अवश्य छूट जाते । अच्छे-अच्छे वकीलोंने उन्हें अपनी ओरसे यह कहलवाया कि वे उनकी पैरवी करनेके लिए तैयार हैं । लेकिन उनकी बहादुर माँने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा : मेरा बच्चा सत्याग्रही है । मैं जानती हूँ कि वह निर्दोष है। बचाव न करनेपर उसका जेल जाना सम्भव है । लेकिन अगर की हुई प्रतिज्ञाको वह तोड़ता है तो मुझे और हमारे कुलको लजायेगा। मुझे उसका बचाव नहीं चाहिए", ऐसा कहकर उस बहादुर माँने अपने लड़केको (अदालतमें अपना बचाव पेश करनेके संकटसे) बचा लिया । गोविन्दजी- को अगर माँका बल और आशीर्वाद प्राप्त न होता तो कदाचित् वे लालच में पड़ जाते। लेकिन उन्होंने जेल जाना स्वीकार करके अपनी प्रतिज्ञाका पालन किया है। ऐसे उदाहरण बहुत कम हैं जिसमें अपनी प्रतिष्ठाको बट्टा पहुँचानेवाले आरोपके बावजूद असहयोगियोंने अपना बचाव न किया हो । श्री गोविन्दजी वसनजी हमारी बधाईके पात्र हैं । उनके दृष्टान्तको में अनुकरणीय समझता हूँ ।

मेरे इस कथनसे कि अगर श्री गोविन्दजी अपना बचाव करते तो छूट जाते कोई यह न मान बैठे कि अगर यह बात है तो फिर अदालतोंका त्याग किया ही क्यों जाये ? हमें अन्य [अराजनीतिक ] आरोपोंके विरुद्ध भी बचाव करनेकी छूट क्यों न मिले। ऐसे प्रलोभनोंके कारण ही इस जगत् में असत्य और छल-कपट फले-फूले । ब्रिटिश अदालतों में कभी किसीको न्याय मिलता ही नहीं ऐसा तो किसीने कदापि नहीं कहा। लेकिन जहाँ तनिक-सा भी राजनीतिक प्रसंग होता है वहाँ इन अदालतों में न्याय मिलना लगभग असम्भव होता है, कौन ऐसा भारतीय है जो इस तथ्यसे परिचित नहीं है ? तिलक महाराजने अपने बचावकी भारी कोशिश की। उस समय हम इसमें कोई दोष नहीं मानते थे । उस समय तो बचाव करना ही धर्म था। लेकिन वे बच नहीं पाये । पंजाबमें लाला हरकिशनलाल आदिने वकीलोंपर पानीकी तरह पैसा बहाया, लेकिन क्या वे बच सके ? और यह तो हम जानते ही हैं कि लाला लाजपतराय, चित्तरंजन दास, मौलाना अबुल कलाम आदि बिलकुल निर्दोष हैं । हम यह भी जानते हैं कि अगर उन्होंने बड़े-बड़े वकीलोंको नियुक्त किया होता तो भी वे बच न पाते। इसी कारण जहाँ राज्यसत्ता मदान्ध हो जाती है वहाँ उसकी ओरसे मिलनेवाले मामूली लाभोंका त्याग करना धर्म माना गया है । अदालतें राज्यसत्ताका बहुत जबरदस्त स्तम्भ हैं । सामान्य स्थितिमें यह सम्भव है कि लोग इसका लाभ उठायें, लेकिन समझदार लोग ऐसी सहायताके प्रलोभनमें नहीं आते ।

भाटिया भाई-बहनोंसे

एक भाटिया[१]सज्जन लिखते हैं :[२]

  1. कच्छको एक व्यापारी जाति ।
  2. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है ।