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दैवी चेतावनी


प्राप्त कर सकेंगे, उसी मार्गसे खिलाफतकी सेवा कर सकेंगे और पंजाब के मामले में न्याय प्राप्त कर सकेंगे । कांग्रेसमें और खिलाफतकी परिषदोंमें यही मार्ग स्वीकार किया गया है। फिर भी यदि हम इसका त्याग करते हैं तो इसका मतलब यह होगा कि हम धर्मके लिए या ईश्वरके लिए नहीं वरन् अधर्म और शैतानकी खातिर लड़ते हैं ।

हमें दूसरोंका अनुकरण नहीं करना है; गाजी मुस्तफा कमाल पाशाका भी नहीं । "यदि दुर्बल व्यक्ति सबलका अनुकरण करे, वह अगर मरेगा नहीं तो बीमार अवश्य पड़ेगा" यह एक बहुत ही सच्ची कहावत है । ज्ञानी अपनी प्रकृतिके अनुसार आचरण करता है। जगत् अपने स्वभावके अनुसार चलता है। फिर बलात्कारसे क्या लाभ हो सकता है ? मैं सच कहता हूँ कि हिन्दुस्तान शरीर-बलसे साम्राज्यका उपभोग कभी नहीं कर सकता। उससे यह आशा रखना कि वह शरीर बलके द्वारा कुछ कर दिखायेगा, उसके साथ बलात्कार करने जैसा है। हिन्दुस्तानका स्वभाव शान्तिमय है । इसी कारण हिन्दुस्तान जाने-अनजाने शान्ति और सत्यमय असहयोगपर मोहित हो गया है । अहमदाबाद और वीरमगाँव के पागल लोगोंका किसीने अनुकरण नहीं किया और न ही कोई चौरीचौराके पागल लोगोंका अनुकरण करेगा । यह हिन्दुस्तानका स्वभाव नहीं है, यह तो रोग है । टर्कीकी बात अलग है; मुस्तफा कमाल पाशाकी तलवार चलती है क्योंकि प्रत्येक तुर्ककी रग-रगमें ताकत है। तुर्क सैकड़ों वर्षसे लड़ते चले आये हैं । हिन्दुस्तानकी जनता हजारों वर्षोंसे शान्त रही है। इन दोनोंमें से किस राष्ट्रकी जनताने ज्यादा अच्छा काम किया और किसने नहीं किया-इस समय हम इस वाद-विवाद में नहीं पड़ेंगे। हिंसा और अहिंसा दोनोंका इस जगत् में स्थान है । आत्मा और शरीर दोनोंका कार्य चलता है पर अन्ततः विजय आत्माकी है अथवा शरीरकी, इसपर विचार करने का यह समय नहीं है । इसपर यदि हम विचार करना चाहें तो भले ही स्वराज्य प्राप्त करने के बाद विचार करें। अभी तो हमें आसानसे आसान उपायोंसे स्वराज्य प्राप्त करना चाहिए। एक क्षणमें हिन्दुस्तानका स्वभाव नहीं बदल सकता। हिन्दुस्तानको तलवार के जरिये स्वतन्त्र करवाने वाले व्यक्तिको युग चाहिए, ऐसी मेरी दृढ़ मान्यता है ।

हिन्दुस्तानके मुसलमान भी अगर मुस्तफा कमाल पाशाका अनुकरण करते हैं तो इस्लामकी प्रतिष्ठामें बट्टा लगायेंगे । इस्लाममें शान्तिका महत्त्वपूर्ण स्थान है । शान्ति और सबका महत्त्व क्रोधकी अपेक्षा, तलवारकी अपेक्षा कहीं अधिक है । हिन्दुस्तान-की जनता बहुत लम्बे अर्से से शान्ति और सत्यकी उपासना करती आई है। इनका पुनरुद्धार करके हिन्दुस्तान चाहे तो आज ही स्वराज्य प्राप्त कर सकता है अथवा इनका त्याग करके गुलाम बना रह सकता है । मनुष्य एक साथ पूर्व और पश्चिम, दोनों दिशाओंमें नहीं जा सकता । फिलहाल तो यही स्पष्ट दिखता है कि पश्चिमका मार्ग अशान्तिका, नास्तिकताका है; तथा एक लम्बे समय से लोगोंको इस बातकी प्रतीति हो गई है कि पूर्वका मार्ग शान्ति और धर्मका है, आस्तिकताका है। पश्चिमका आकर्षण- केन्द्र इस समय इंग्लैंड है । पूर्वका आकर्षण केन्द्र अनादि कालसे हिन्दुस्तान रहा है । दुनियाको लगता है कि इंग्लैंड साम्राज्यका स्वामी है और भारतभूमि उसकी मुख्य

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