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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


पर ईश्वरकी कृपा होती है उसे तो अगर वह इशारोंसे नहीं चेतता तो नौबत बजाकर और अगर नौबतसे भी नहीं चेतता तो घन-गर्जन और बिजलीके साथ मूसलाधार पानी बरसाकर चेतावनी देता है । सहज धर्मका पालन करके हम गम्भीर संकटोंसे मुक्त हो गये हैं ।

हमें झुकना पड़ा, पीछे हटना पड़ा- सो आगे बढ़ने के लिए ही । जो राहसे भटक जाता है उसे पहले तो लौटकर उसी स्थानपर आना पड़ता है और वापस आनेके बाद ही वह फिर आगे बढ़ता है। मतलब यह कि हम जो नीचे गिरते जा रहे थे, कार्य समिति के इस प्रस्तावके बादसे अब ऊपरकी ओर चढ़ने लगे हैं ।

लेकिन मेरे लिए इतना पर्याप्त नहीं है। मुझे इससे अधिक प्रायश्चित्तकी जरूरत थी। गोरखपुरसे तार आने के बादसे ही मानसिक पीड़ा आरम्भ हो गई थी, लेकिन देह-दमनकी आवश्यकता थी। अपनी भूलके परिमापको देखते हुए मैं मात्र पाँच दिनके उपवाससे सन्तुष्ट नहीं हो सकता था। मेरी इच्छा चौदह दिनका उपवास करनेकी थी । लेकिन मैंने उसे पाँच ही दिनका रहने दिया है। अगर यह प्रायश्चित्त कम हुआ तो मुझे देर या सवेर बाकीका चुकाना ही होगा और सो भी चक्रवृद्धि ब्याजके साथ । जो व्यक्ति अपना ऋण यथासमय पूरा-पूरा चुका देता है वही बादमें ज्यादा बड़ा ऋण चुकानेकी स्थिति से बच सकता है ।

प्रायश्चित्तका ढोल नहीं पीटा जाना चाहिए तथापि उसे मैंने प्रकाशित किया है । इसका एक विशेष कारण है । मेरा उपवास मेरे लिए प्रायश्चित्त है, लेकिन चौरीचौरा के लोगोंके लिए यह दण्ड है । प्रेमका दण्ड ऐसा ही होता है। प्रेमी जब दुःखी होता है तब प्रियको दण्ड नहीं देता लेकिन स्वयं पीड़ा भोगता है। भूखा रहता है और अपना माथा पीटता है। प्रियजन इसे समझता है या नहीं, इसकी वह चिन्ता नहीं करता ।

लेकिन मैंने अपने उपवासको प्रकाशित कर दिया है, यह दूसरोंके लिए भी चेतावनी है। मेरे पास और कोई उपाय ही नहीं है। असहयोगी अगर मुझे छलता है - और मैं तो समस्त हिन्दुस्तानको असहयोगी मानता हूँ तो वह मेरे प्राण ले ले। मुझे तो ऐसा मोह है कि हिन्दुस्तानको अभी मेरी देहकी जरूरत है। अगर यह सच है तो मैं शारीरिक कष्टको सहनकर हिन्दुस्तानको यह सूचना दे रहा हूँ कि वह मुझे धोखा न दे। अगर वह चाहे तो “शान्ति" शब्दको, शान्तिका पालन करने की शर्तको छोड़ने का फैसला करे और मेरा त्याग करे। लेकिन जबतक वह मेरी सेवाओंको स्वीकार करता है तबतक उसे शान्ति तथा सत्यको भी स्वीकार करना ही होगा ।

आज तो पाँच दिनके उपवाससे ही निबटारा हो गया लेकिन यदि लोग अब भी नहीं चेतेंगे तो पाँचके पन्द्रह और पन्द्रहके पचास हो सकते हैं और इस तरह मेरे प्राण भी जा सकते हैं।

यह लेख मैं उपवासके तीसरे दिन लिख रहा हूँ।[१]मेरी आत्मा साक्षी देती है। कि हिन्दू, मुसलमान, पारसी और ईसाई सब शान्ति तथा सत्यके मागसे ही स्वराज्य

  1. यह उपवास १२ फरवरीको शुरू किया गया था ।