पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/४७१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



४४७
देवी चेतावनी

  इसलिए मैं तो दिन-प्रतिदिन यह सीखता जाता हूँ कि हमारा स्वराज्य हमारे प्रयत्नोंमें ही निहित है ।

सन् १९१९ में अहमदाबाद और वीरमगाँवने, अमृतसर और कसूरने मुझे मेरी भूल बताई और सत्याग्रह स्थगित हो गया।[१]गत नवम्बर में बम्बईमें मुझे मनुष्यके जंगलीपनका साक्षात्कार हुआ। और मैंने फिर सामूहिक सविनय अवज्ञा स्थगित कर दी।[२] तब भी मुझे पूरी सीख नहीं मिली । अब चौरीचौराने मुझे शिक्षा दी । कौन जाने मेरे भाग्य में अभी ऐसी कितनी ठोकरें लिखी होंगी । अब यदि लोग मेरे नेतृत्वको अस्वीकार कर दें या मूर्ख मानें तो इसमें उनका दोष नहीं माना जायेगा ।

मैं यदि मनुष्य-स्वभावको नहीं जानता तो ऐसे कार्यों में हाथ ही क्यों डालता हूँ ?

मुझसे तो रहा ही नहीं जाता । भूल होनेपर उसे स्वीकार किये बिना भी नहीं रहा जाता । मुझे लोगों द्वारा अस्वीकार किया जाना अच्छा लगेगा, मेरी गिनती मूर्खोमें की जाये, यह तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा; लेकिन मैं अपने शरीरमें दोषका मैल रखकर आत्माको कदापि मलिन नहीं कर सकता ।

"राणा रूठे नगरी राखे, हर रूठे कहाँ जाऊँ ?" इस आशयका गीत मीराने गाया है या नहीं, इसकी मुझे खबर नहीं, लेकिन उसने ऐसा कर दिखाया। हम इस जगत्की गाली सहन करें लेकिन ईश्वर के अपराधी न बनें, उसकी चेतावनीको अवश्य शिरोधार्य करें ।

गोरखपुरसे देवी चेतावनी मिलनेके बावजूद अगर हम बारडोलीके सविनय अवज्ञा आन्दोलनको बरकरार रखते तो हमें हाथ मलने पड़ते, जनताको भारी नुकसान उठाना पड़ता, सत्य और शान्तिकी बदनामी होती । हम कायर तो कहलाते ही हैं; इसके बाद हमारी गिनती झूठोंमें भी होती। मेरे शब्द, मेरी शर्त यह थी कि हिन्दुस्तान के अन्य भाग शान्त रहेंगे तभी बारडोली सविनय अवज्ञा करेगा। यह शर्त टूटने- के बावजूद यदि बारडोली सविनय अवज्ञा करता तो बारडोली भी पापी बनता ।

यदि कोई यह तर्क प्रस्तुत करे कि हिन्दुस्तान के लोग ऐसी शान्तिका पालन नहीं कर सकते तो इसे हम भले चुपचाप सुन लें। लेकिन यह तर्क तो सत्याग्रहका और विनयका मार्ग छोड़ने का तर्क है । विनयका मार्ग छोड़कर हिन्दुस्तान जो चाहे सो करे लेकिन हमें तो यह देखना है कि वह सत्यके नामपर असत्यका आचरण न करे, शान्तिके नामपर शान्ति भंग न करे । बारडोलीने और मैंने इन बातोंका पूरा-पूरा पालन किया है। ऐसा करके हम दोनोंने राष्ट्रकी सेवा की है। मैं तो यह मानता हूँ कि ऐसा करके मैंने अपनी सेवककी योग्यता सिद्ध की है। भूलको स्वीकार करनेसे जनता- की उन्नति ही होगी, उसका पतन नहीं होगा ।

सचमुच, ईश्वरने ही हमारी लाज रखी है। मुझे तो मद्रासकी घटनाओंसे ही चेत जाना चाहिए था । अपने विरोधियों और असहयोगियोंके मुझे जो पत्र प्राप्त होते रहते हैं, उनसे भी मुझे सावधान हो जाना चाहिए था नहीं चेता, लेकिन जिस-

 
  1. देखिए खण्ड १५, पृष्ठ २५१-५५२ ।
  2. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ ४८५-८९