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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अधःपतनको रोकने के लिए भी ऐसा करना अनिवार्य है । इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आन्दोलनको स्थगित करनेसे प्रत्येक कांग्रेसी स्त्री या पुरुष न केवल अपने को निराश अनुभव नहीं करेगा, बल्कि यह अनुभव करेगा कि वह अयथार्थता तथा राष्ट्रीय पापके भारसे मुक्त हो गया है ।

हमारे अपमान और कथित पराजयपर प्रतिपक्षी गर्व करते रहें। अपनी प्रतिज्ञा भंग करके ईश्वर के प्रति पाप करने की अपेक्षा कायर और कमजोर होने का दोषी होना कहीं अच्छा है। अपने प्रति झूठा सिद्ध होने की अपेक्षा संसारकी आँखोंके सामने झूठा सिद्ध होना लाख गुना अच्छा है ।

इसलिए सामूहिक सविनय अवज्ञा तथा उन अन्य छोटी-मोटी गति-विधियोंको, जिनसे उत्साह कायम रह सकता था, स्थगित करना ही मेरे प्रायश्चित्तके लिए काफी नहीं है, क्योंकि चौरीचौरामें लोगोंने जो पाशविक हिंसा की है उसका मैं, अनैच्छिक रूपमें ही सही, एक उपकरण रहा हूँ ।

मुझे वैयक्तिक रूपसे प्रायश्चित्त करना होगा। मुझे एक ऐसा संवेदनशील उपकरण बनना है जो आसपासके नैतिक वातावरणमें होनेवाले सूक्ष्मतम परिवर्तनको स्पष्ट रूपसे प्रकट कर सके । मेरी प्रार्थनाओंमें उससे कहीं अधिक गहरी सचाई तथा नम्रता होनी चाहिए जितनी कि उनसे अभी प्रकट होती है । और मेरे लिए तो उपवास तथा उसके साथ आवश्यक मानसिक सहयोगके समान सहायक एवं शुद्ध करनेवाला कोई उपाय नहीं है ।

मैं जानता हूँ कि मानसिक प्रवृत्ति ही सब कुछ है। जिस प्रकार प्रार्थना पक्षीकी चहचहाहटके समान केवल यान्त्रिक स्वर - विन्यास हो सकती है, उसी प्रकार उपवास भी शरीरको दिया जानेवाला केवल यान्त्रिक कष्ट हो सकता है। इस प्रकारके यान्त्रिक उपायका वांछित उद्देश्यकी सिद्धिके लिए कोई महत्त्व नहीं है । फिर, जिस प्रकार यान्त्रिक गायनसे कण्ठ सुरीला हो सकता है उसी प्रकार यान्त्रिक उपवास केवल शरीर को शुद्ध कर सकता है; किन्तु दोनोंमें से अन्तरात्माको कोई भी स्पर्श नहीं करेगा ।

किन्तु जब पूर्णतर आत्म-प्रकाशनके लिए तथा शरीरपर आत्माका प्रभुत्व स्थापित करने के लिए उपवास किया जाता है तब वह सम्बन्धित व्यक्तिके विकासमें अत्यधिक शक्तिशाली सिद्ध होता है । इसलिए गम्भीर चिन्तनके बाद मैंने पाँच दिनके सतत उपवासका व्रत लेने का निश्चय किया है। इस बीच मैं जलके अतिरिक्त और कुछ नहीं लूंगा। यह रविवारकी[१]शामको प्रारम्भ हुआ है और शुक्रवारकी शामको समाप्त हो जायेगा । कमसे कम इतना तो मुझे करना ही होगा ।

शीघ्र ही अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी जो बैठक[२] होने वाली है, उसपर मैंने विचार कर लिया है। मैं यह जानता हूँ कि मेरे पाँच दिनके उपवाससे भी मेरे बहुतसे मित्रोंको कितनी अधिक वेदना होगी। किन्तु मैं इस प्रायश्चित्तको और स्थगित नहीं कर सकता और न मैं इसे कम कर सकता हूँ ।

 
  1. १२ फरवरी, १९२२ ।
  2. यह २४ और २५ फरवरीको दिल्लीमें हुई थी ।