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चौरीचौराका हत्याकाण्ड


ईंट-पत्थर फेंकने या धमकियाँ देने और बल-प्रयोगसे है । वस्तुतः सविनय अवज्ञामें उत्तेजना होनी ही नहीं चाहिए। सविनय अवज्ञा तो चुपचाप कष्ट सहनकी तैयारी मात्र है । उसका प्रभाव आश्चर्यजनक होता है, यद्यपि वह दिखाई नहीं देता और धीरे-धीरे होता है । किन्तु मेरा विचार था कि थोड़ी मात्रामें उत्तेजना तो अपरिहार्य है; अनिच्छा से की गई कुछ हिंसा भी क्षम्य है, अर्थात् किसी हदतक अपूर्ण परिस्थितियोंमें भी सविनय अवज्ञाको में असम्भव नहीं मानता था । पूर्ण परिस्थितियोंमें तो यदि अवज्ञा सविनय हो तो वह महसूस भी नहीं होती । किन्तु काफी-कुछ प्रतिकूल परिस्थितियोंके अन्तर्गत वर्तमान आन्दोलनको चलाना वस्तुतः एक खतरनाक प्रयोग है ।

चौरीचौराकी दुःखद घटना दरअसल वस्तुस्थितिकी ओर संकेत करनेवाली घटना है । यह बताती है कि यदि कड़ी सावधानी न बरती गई तो भारत आसानीसे किसी ओर जा सकता है। यदि हम हिंसामें से अहिंसाका विकास नहीं कर सकते तो यह स्पष्ट है कि हमें जल्दीसे अपने कदम पीछे हटा लेने चाहिए और शान्तिका वातावरण पुनः स्थापित करना चाहिए, अपने कार्यक्रमको पुनर्गठित करना चाहिए और तब तक सामूहिक सविनय अवज्ञा प्रारम्भ करनेका विचार छोड़ देना चाहिए जबतक कि हमें यह विश्वास न हो जाये कि सामूहिक सविनय अवज्ञा प्रारम्भ करनेपर तथा सरकारके उकसानेपर भी शान्ति कायम रहेगी। हमें इस तरफसे भी आश्वस्त होना चाहिए कि अनधिकृत लोग सामूहिक सविनय अवज्ञा आरम्भ न करें ।

अभी तो स्थिति यह है कि कांग्रेसका संगठन ही अपूर्ण है और उसकी हिदायतोंका पालन अब भी बेदिलीसे किया जाता है । हमने अभीतक प्रत्येक गाँवमें कांग्रेस कमेटियाँ स्थापित नहीं की हैं । जहाँ हमने स्थापित की हैं वहाँ वे हमारी हिदायतोंका पालन पूर्णरूपसे नहीं करतीं। हमारी सूचीमें शायद एक करोड़से अधिक सदस्य नहीं हैं । फरवरीका आधा मास बीत गया है, लेकिन बहुत से लोगोंने चालू वर्षका चार आने चन्दा अभीतक अदा नहीं किया है । स्वयंसेवकोंके नाम दर्ज करते समय पूरा ध्यान नहीं दिया जाता। वे अपनी प्रतिज्ञाकी सभी शर्तोंका पालन नहीं करते। वे हाथसे कताबुना खद्दरतक नहीं पहनते । सभी हिन्दू स्वयंसेवकोंने अभीतक अपनेको अस्पृश्यताके पाप से मुक्त नहीं किया है। उनमें से सभी अबतक हिंसाके दोषसे मुक्त नहीं हुए हैं । उनके जेल जानेसे हम न तो स्वराज्य ही प्राप्त कर सकेंगे, न खिलाफतके पवित्र उद्देश्यको सफल बना सकेंगे और न बेईमान सरकारी नौकरोंका वेतन बन्द करनेकी ही योग्यता प्राप्त कर सकेंगे। हममें से कुछ लोग न चाहते हुए भी गलती कर बैठते हैं, किन्तु कुछ दूसरे लोग तो जान-बूझकर पाप करते हैं । यह जानते हुए भी कि वे न तो अहिंसक रहना चाहते हैं और न रह ही सकते हैं, वे स्वयंसेवक दलमें भरती हो जाते हैं। इस तरह हम जिस प्रकार सरकारको झूठा समझते हैं, उसी प्रकार हम भी झूठे हैं। सत्य और अहिंसाके प्रति केवल मौखिक सम्मान दिखाकर हमें स्वतन्त्रताके साम्राज्य में प्रवेश करनेका साहस नहीं करना चाहिए ।

आगे प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि सामूहिक सविनय अवज्ञाको स्थगित कर दिया जाये और उत्तेजनाको रोका जाये। सच तो यह है कि और अधिक