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चौरीचौराका हत्याकाण्ड

उन्होंने इन्स्पेक्टर द्वारा जनताको दिया गया यह वचन भी भंग किया कि उसे तंग नहीं किया जायेगा । जब जलूस निकल गया तब पुलिसके सिपाहियोंने पीछे छूटे हुए लोगोंको तंग किया और उन्हें गालियाँ दीं। लोग सहायता के लिए चिल्लाये । भीड़ वापस आ गई। पुलिस के सिपाहियोंने गोलियाँ दागीं । उनके पास जो थोड़ी-सी गोलियाँ थीं वे समाप्त हो गईं। वे सुरक्षाके लिए थाने में वापस चले गये । इसपर भीड़ने, जैसा कि मेरे संवाददाताका कहना है, थाने में आग लगा दी । अब सिपाहियोंको, जिन्होंने अपनेको अन्दर बन्द कर रखा था, अपना जीवन बचानेके लिए बाहर आना पड़ा, और जब वे बाहर आये, उन्हें मारकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया और उनके खण्ड-खण्ड हुए शरीरावशेषको आगकी प्रचण्ड लपटोंमें डाल दिया गया ।

यह दावा किया जाता है कि इस पाशविक कृत्यमें किसी असहयोगीका कोई हाथ नहीं है और न केवल उस समय भीड़को उत्तेजित करनेवाली कार्रवाई की गई थी, बल्कि उसे जिलेमें पुलिस द्वारा किये गये भीषण अत्याचारोंका भी पता था । किन्तु किसी प्रकारकी भी उत्तेजना ऐसे व्यक्तियोंकी पाशविक हत्याका औचित्य सिद्ध नहीं कर सकती, जो बिल्कुल असहाय हो गये थे और जिन्होंने दरअसल अपनेको भीड़की दयापर छोड़ दिया था । और जब भारत अहिंसक होने का दावा करता है और अहिंसक तरीकोंसे स्वतन्त्रताका सिंहासन प्राप्त करने की आशा रखता है तब भयंकर उत्तेजनाके बावजूद भीड़ द्वारा हिंसाको अपनाना अशुभ बात ही है । मान लीजिए, ईश्वर बारडोलीकी 'अहिंसक' अवज्ञाको सफल बना देता और सरकार विजेताओंके पक्षमें गद्दी छोड़ देती, उस दशा में उन उपद्रवी तत्त्वोंपर कौन नियन्त्रण रखता जो पर्याप्त उत्तेजना के कारण प्रस्तुत होनेपर पाशविक कृत्य करते हों ? अहिंसक तरीकोंसे स्वराज्य प्राप्त करने में यह बात पहलेसे ही शामिल है कि देशके हिंसक तत्वोंपर अहिंसा द्वारा काबू पा लिया गया है । अहिंसक असहयोगी तभी सफलता प्राप्त कर सकते हैं जब वे भारत के हुल्लड़बाजोंपर काबू पा लें; दूसरे शब्दोंमें जब हुल्लड़बाज लोग भी देशप्रेम या धर्मके कारण कमसे कम तबतक के लिए हिंसासे दूर रहना सीख लें जबतक कि असहयोग आन्दोलन चल रहा है । इसलिए चौरीचौराकी दुर्घटनाने मुझे पूर्ण रूप से सजग कर दिया है ।

किन्तु शैतानकी आवाज बोली, "वाइसरायको भेजे गये आपके घोषणापत्र तथा उनके उत्तरमें लिखे गये आपके प्रत्युत्तरका क्या होगा ? "अपमानका यह घूँट सबसे अधिक कड़वा था । " बड़े जोश-खरोश के साथ सरकारको धमकी देकर तथा बारडोलीके लोगोंको वचन देकर दूसरे ही क्षण पीछे हट जाना निश्चित रूपसे कायरता है ।" इस प्रकार शैतान आमन्त्रित कर रहा था कि सत्यसे इनकार कर दो, इस तरह धर्म तथा स्वयं ईश्वरको अस्वीकार कर दो। मैंने अपनी शंकाएँ तथा कठिनाइयाँ कार्य-समिति तथा उन अन्य साथियोंके सामने रखीं, जिन्हें मैंने अपने नजदीक पाया। पहले तो वे मुझसे सहमत नहीं हुए। उनमें से कुछ तो शायद अब भी मुझसे सहमत नहीं हैं, किन्तु जैसे विचारशील और क्षमाशील साथी प्राप्त करनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है वैसा शायद ही कभी किसीको हुआ हो। उन्होंने मेरी कठिनाई समझ ली और मेरे