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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

न छप सका

दिल्ली जेल में होनेवाले बरताव के बारेमें एक महत्त्वपूर्ण पत्र, जो इन पृष्ठों में दी गई बातों की पुष्टि करता है, अधिक सामग्री आ जानेके कारण, प्रकाशित नहीं किया जा सका है। इसी प्रकार अन्य महत्त्वपूर्ण चीजें भी प्रकाशित नहीं की जा रही हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया,१६-२-१९२२


१७४. चौरीचौराका हत्याकाण्ड

ईश्वरकी मुझपर असीम कृपा रही है। उसने तीसरी बार मुझे चेतावनी दी है। कि अभी भारत में वैसी सत्यपरायणता और अहिंसाका वातावरण स्थापित नहीं हो पाया है जैसा कि आवश्यक है। ऐसे और केवल ऐसे ही वातावरणमें सविनय कही जा सके, ऐसी सामूहिक अवज्ञा करना उचित माना जा सकता है । उसे सविनय अर्थात् नम्रतापूर्ण, सत्यमूलक, विनीत, सजग तथा स्वेच्छाकृत, फिर भी प्रिय कहा जा सकता है और वह अपराधपूर्ण तथा घृणित कभी भी नहीं हो सकती ।

उसने मुझे १९१९ में, जब रौलट अधिनियम विरोधी आन्दोलन प्रारम्भ किया गया था, चेतावनी दी। अहमदाबाद, वीरमगाँव और खेड़ामें गलतियाँ हुई; अमृतसर और कसूर में भी गलतियाँ हुईं। मैंने अपने कदम वापस ले लिये, इसे अपनी हिमालय-जैसी भारी भूल कहा;[१] ईश्वर और मानव के सामने अपनी पराजय स्वीकार की तथा न केवल सामूहिक सविनय अवज्ञाको बल्कि अपनी वैयक्तिक सविनय अवज्ञाको भी, जिसे मैं जानता हूँ कि विनयपूर्ण एवं अहिंसात्मक ही रखनेका इरादा था, स्थगित कर दिया।

दूसरी बार बम्बईकी घटनाओंके जरिये ईश्वरने मुझे भयानक चेतावनी दी । उसने १७ नवम्बरको बम्बईकी भीड़की करतूतें मुझे प्रत्यक्ष दिखाई। भीड़ने सोचा कि वह असहयोगकी भलाई कर रही है । बारडोलीमें सामूहिक सविनय अवज्ञा तुरन्त प्रारम्भ होनेवाली थी। मैंने उसे बन्द करनेका अपना इरादा घोषित किया। इस बार १९१९ से कहीं अधिक अपमान सहना पड़ा। किन्तु इससे मेरा भला ही हुआ । मेरा विश्वास है कि आन्दोलन स्थगित करनेसे राष्ट्रको लाभ ही हुआ । इससे ज्ञात हुआ कि भारत सत्य और अहिंसाका पोषक है ।

किन्तु अभी मेरे लिए अपमानका सबसे कड़वा घूंट पीना शेष था । मद्रासने मुझे चेतावनी भी दी, किन्तु मैंने उधर ध्यान नहीं दिया । पर ईश्वरने चौरीचौराके जरिये मुझे स्पष्ट बताया। मुझे मालूम है कि पुलिसके जिन सिपाहियोंकी बर्बरता पूर्वक बोटी-बोटी काट डाली गयी, उन्होंने बहुत उत्तेजनात्मक कार्रवाई की थी।

 
  1. देखिए खण्ड १५, पृष्ठ ४५० ५३ ।