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टिप्पणियाँ


दीनानाथ, जो एक गैर-सिख हैं और चाबियोंवाले मामलें[१]गिरफ्तार किये गये थे, की रिहाईपर जोर दे रही है । समितिने एक साहसपूर्ण नोटिस जारी किया है जिसे मैं प्रकाशित कर रहा हूँ ।[२]

अहमदाबाद और सूरत

अहमदाबाद और सूरतकी नगरपालिकाओं को सरकारने अपने हाथमें ले लिया है[३]—इसलिए नहीं कि वे अपना काम अच्छी तरह नहीं चला पाती थीं, बल्कि इसलिए कि बहुत ही अच्छी तरह चलाती थीं और वे अपना काम बहुत आजादीके साथ करती थीं। ये दो नगरपालिकाएँ तथा नडियादकी नगरपालिका बड़े व्यवस्थित ढंगसे, वीरता और शानके साथ सरकारकी बेजा दस्तंदाजी और अनुचित नियन्त्रणके विरुद्ध संघर्ष करती रही हैं । इन नगरपालिकाओंका अपराध यह था कि उन्होंने प्रारम्भिक पाठशालाओंको सरकारके अंकुशसे मुक्त कर दिया है। उन्होंने सरकारी सहायता लेना बन्द कर दिया था । यह खयालमें रखनेकी बात है कि इन नगरपालिकाओंमें निर्वाचित सदस्योंका बहुमत था, और वे करदाताओंसे हमेशा अच्छी तरह सलाह मशविरा करके काम करते रहे हैं। पर स्पष्ट है कि सरकार इसी बातको नहीं चाहती क्योंकि इससे लोकमत प्रभावकारी होता है ।

नगरपालिकाके पार्षदों और मतदाताओंका कर्त्तव्य बहुत सरल है । वे अब भी प्रारम्भिक पाठशालाओंपर अपना कब्जा बनाये रखें। करदाता लोग उस नामजद समितिको कर न दें जो सरकार नागरिकोंपर थोपे लेकिन उन्हें अपने बच्चोंको राष्ट्रीय शिक्षा दिलाने के लिए रुपया अवश्य देना चाहिए। पार्षदगण मतैक्य के साथ मिल कर काम करें और जहाँतक व्यवहार्य हो, वे इस तरह काम करें गोया वह राष्ट्रीय नगरपालिका ही है । मेरी रायमें तो शायद ही कोई ऐसा महकमा होगा जिसे चलाने में शिक्षित और प्रबुद्ध नागरिकोंको सरकारी सहायताकी जरूरत हो। ऐसा कोई भी कारण नहीं है जिससे अहमदाबाद, सूरत और नडियाद के लोग सरकारका मुंह ताके बिना अपने शहरोंकी सड़कें व नालियाँ साफ न कर सकें, रोशनीका प्रबन्ध न कर सकें, अपने ही बच्चोंकी शिक्षाकी व्यवस्था न कर सकें, रोगियोंका इलाज न कर सकें और लोगोंको पानी न पहुँचा सकें। हाँ, पुलिसकी सत्ता उनके पास नहीं है। उन्हें सिर्फ एक ही बातमें सरकारकी सहायताकी जरूरत होगी. वसूल करनेमें। सो सरकारी ताकतकी जगहपर लोकमतकी ताकत रख दीजिए; बस आपको कर वसूल करनेकी मंजूरी मिल गई ।

अहमदाबादमें सत्ताके बलपर जितना कर वसूला जाता है, उससे ज्यादा धन तो स्वेच्छापूर्वक दिये गये चन्दोंमें जमा हो जाता है । इन जाग्रत स्थानों में नामजद समितियों और लोकनिर्वाचित प्रतिनिधियोंका द्वन्द्व-युद्ध जनता बड़े चावके साथ देखेगी ।

 
  1. देखिए “टिप्पणियाँ ", १२-१-१९२२ का उप-शीर्षक " गुरुद्वारा आन्दोलन " ।
  2. यहाँ नहीं दिया जा रहा है ।
  3. फरवरीके शुरूमें ।