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१७३. टिप्पणियाँ

अली भाई

अली-भाइयोंके सम्बन्ध में इस हफ्ते काफी जानकारी मिली है। मैंने सरकार द्वारा किया गया खण्डन भी पढ़ा है। इसके सिवा लोगोंने अपने नेताओंके बारेमें तरह- तरह की अफवाहें सुन रखी थीं जिनमें से एक यह भी थी कि अली-भाइयों में से एककी मृत्यु हो गई है। इस कारण लोग अधीर और उत्तेजित हो उठे थे । [ उन्हें शान्त करने के लिए] अली भाई तथा डाक्टर किचलूको जेलके छज्जेपर लाया गया । यदि मजिस्ट्रेटका कथन बिलकुल सही है, तो कराचीसे प्राप्त समाचार निश्चय ही अति- रंजित है । किन्तु श्री महादेव देसाईने जेलमें अपने साथ अच्छे व्यवहारका जो प्रमाणपत्र अधिकारियोंको दिया था, उसे अधिकारियों द्वारा, यह जानते हुए भी कि प्रमाणपत्र देने के पहले वे बहुत तकलीफ उठा चुके थे, अपने पक्ष में पेश किये जानेके बाद अब मैं मजिस्ट्रेट द्वारा किये गये अर्ध-खण्डनको भी अविश्वासकी दृष्टिसे देखता हूँ । साथ ही यह भी सच है कि कराचीसे प्राप्त समाचार त्रुटिपूर्ण अवश्य हैं । अब साफ हो गया है कि समाचारोंसे जैसा लगता है वैसा क्रूरतापूर्ण और अभद्र व्यवहार उनके साथ नहीं किया गया था । किन्तु यदि अधिकारी लोग जेलमें होनेवाले व्यवहार के बारेमें अनावश्यक गोपनीयता बरतें और रिश्तेदारों को भी उक्त कैदियोंसे मिलनेकी इजाज़त न दें, तो फिर जो हुआ उसके दोषी वे स्वयं हैं । जब कैदियोंके रिश्तेदार लोग कैदियों के साथ ऐसे दुर्व्यवहारकी शंका करते हों जिसे जेलके अधिकारीगण मानने को तैयार नहीं हैं, तब उस हालत में, यदि उन्हें कुछ छिपाना अभीष्ट नहीं है तो रिश्तेदारोंको कैदियोंसे मिलने की अनुमति देने में उन्हें झिझकना नहीं चाहिए। उन्हें यह अनुमति रिश्तेदारोंको सुविधा देने या कैदियों की खातिर नहीं, बल्कि अपने ही हित में दे देनी चाहिए ।

साबरमती जेलके कैदी

उदाहरण के लिए साबरमती जेलके कैदियों को लीजिए। मैं समझता हूँ कि पिछले सप्ताह जो सूचना[१] मैंने दी थी वह बिलकुल सही है और उसमें जिस दुर्व्यवहारका जिक्र है वह न केवल श्री जयरामदास के साथ, बल्कि मौलाना हसन अहमद और उसी जेल में रखे गये धारवाड़ के दो कैदियों के साथ भी किया गया है। मौलाना और धारवाड़ के एक कैदी श्री दाभाड़े, ये दोनों ही लगभग ६० वर्ष के बूढ़े आदमी हैं। खाना- तलाशी लेनेपर आपत्ति करनेके कारण उन्हें जिस तरहसे दण्डित किया जा रहा है, वह निश्चय ही अमानुषिक है और उस "कानून तथा व्यवस्था" के हक में भी इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता जिसके लिए सरकार इतनी अधिक उत्कण्ठा व्यक्त करती रहती है । अपने पास आये एक पत्रसे मैं यहाँ एक उद्धरण दे रहा हूँ :

  1. देखिए " टिप्पणियां ", ९-२-१९२२ का उप-शीर्षक "साबरमती जेल में "।