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भेंट : 'बॉम्बे क्रॉनिकल 'के प्रतिनिधिसे

खेड़ामें भी सामूहिक सविनय अवज्ञा की गई थी और उसमें हिंसाकी एक भी घटना नहीं हुई । सामूहिक सविनय अवज्ञा समस्त भारत के लिए और भारतके नामपर एक सफल कार्यक्रमका विस्तार मात्र है । यदि भारत के अन्य हिस्सों में भी उसकी नकल बिना सोच-विचारके करने का खतरा न होता तो मैं निश्चय ही बारडोलीके कार्यक्रमको स्थगित न करता । मुझे पूरा विश्वास है कि भारतके अन्य भागों में हिंसा भड़क उठने के बावजूद बारडोली के लोग पूरी तरह अहिंसात्मक रहते, किन्तु उससे राष्ट्रीय उद्देश्य पूरा नहीं होता । यदि बारडोली किसी स्थानीय शिकायत के लिए सामूहिक सविनय अवज्ञा करता तो निश्चय ही वह बन्द न की जाती ।

यदि आप सविनय अवज्ञा एक स्थानपर बन्द करा सकते हैं, या उसकी एक कड़ी तोड़ सकते हैं तो आप पूरी श्रृंखला भी तोड़ देंगे। इसलिए क्या नगरपालिकाके अधिकारोंपर ही पूरा ध्यान देना और सरकारको नीचा दिखाना बेहतर नहीं होगा ?

आप किसी एक कार्यक्रमके जरिये यह नहीं कर सकते । निश्चय ही इससे लाभ होगा, किन्तु केवल नगरपालिकाओं के सुधारसे स्वराज्य पाना एक मन्द गतिवाली प्रक्रिया होगी। मैं निश्चय ही आशा कर रहा हूँ कि अहमदाबाद और सूरत अच्छा काम कर दिखायेंगे । और बम्बई सरकारने जो बिना सोचे-विचारे आतंक जमानेकी चेष्टा की है, उसकी व्यर्थता पूर्ण रूपसे सिद्ध कर देंगे । और जब कि अहमदाबाद और सूरत सफल हो जायेंगे तो भी उनकी सफलता से राष्ट्रीय आन्दोलनको लाभ तो होगा, किन्तु इससे स्वराज्यका प्रश्न हल नहीं होगा । स्वराज्य आन्दोलनका अर्थ है पूरे जनसमूहको शिक्षित बनाना और यह काम कुछ शहरोंको पूरी तरहसे ठीक कर देने या स्वतन्त्र सरकार हासिल कर लेनेसे आप नहीं कर सकते । निःसन्देह अहमदाबाद, सूरत और नडियाद जिस प्रकार साहसपूर्वक अनुशासनबद्ध विरोध कर रहे हैं वह सामान्य जनता जागृति आ जाने के कारण ही हो सका है । जब परीक्षण पूर्ण हो जायेगा और यदि वह सफल रहा तो लोग देखेंगे कि इन तीनों स्थानोंके नागरिकोंने कैसे आत्मबल, कैसी रचनात्मक योग्यता, कष्टसहनकी क्षमता और अन्य महान् गुणोंका, जो किसी राष्ट्रको महान् बनाते हैं, परिचय दिया है । परन्तु वह प्रयोग अकेला ही कांग्रेस कार्यक्रम द्वारा निर्धारित समय के अन्दर भारतको स्वराज्य नहीं दिला सकता ।

क्या आप अहमदाबाद और सूरतमें नगरपालिकाका संघर्ष सुसंगठित करने जा रहे हैं ?

नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा; किन्तु मैं आशा करता हूँ कि इन दोनों शहरोंके नागरिकोंने जो संघर्ष सच्चे दिलसे शुरू किया है, उसे वे छोड़ेंगे नहीं ।

कुछ लोगोंने इस प्रकार सोचना शुरू कर दिया है कि आपका यह विचार दुराशा मात्र है कि भारत अहिंसात्मक अवस्था प्राप्त कर लेगा, और वे कहते हैं कि आप भले ही दो वर्षतक लगातार अपने देशभाइयों को अहिंसा सिखलानेका प्रयत्न करते रहें और देश शान्त हो जाये और आप अपना सविनय अवज्ञाका आन्दोलन शुरू भी कर दें तब भी कोई सनकी आदमी राजनीतिक ढंगका कोई एक हिंसापूर्ण