१७०. पत्र : एस० ए० ब्रेलवीको[१]
बारडोली
१५ फरवरी, १९२२
आपके तारमें जो स्नेह झलक रहा है उसकी मैं कद्र करता हूँ। मैं अपने व्रतको जो इतनी पवित्र भावनासे शुरू किया गया था, बीचमें नहीं तोड़ सकता था, लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस उपवाससे मुझे जरा भी कष्टका अनुभव नहीं हो रहा है । मेरे सभी काम यथावत् चल रहे हैं, और मुझे आशुलिपिककी मदद देकर श्री बोमनजीने[२]उचित समयपर मेरा काम बहुत आसान कर दिया है।
बॉम्बे क्रॉनिकल, १७-२-१९२२
१७१. पत्र : महादेव देसाईको
बारडोली
१५ फरवरी, १९२२
बहुत लम्बे अर्से से तुम्हारा कोई पत्र नहीं आया, न तुम्हारे साथके कैदियोंके बारेमें किसीसे कुछ मालूम हुआ । तुम्हें जेलसे लिखनेकी अनुमति है या नहीं, इसके बारेमें मुझे सूचित करना । तुम गुजरातीमें पत्र नहीं लिख सकते, केवल इसी कारण लिखना मत छोड़ देना, क्योंकि मुझे यह मालूम नहीं कि तुम्हें जेलमें क्या छूट दी गई है। मैंने गोविन्दको कोई पत्र नहीं लिखा; मुझे उसका ध्यान तो निरन्तर बना रहता है। उसने मुझे बहुत सुन्दर पत्र लिखा है । मालवीयजीने मुझे गोविन्द और कृष्णकान्तको लिखे अपने पत्रोंको उद्धृत करनेकी अनुमति दे दी है। मैं किसी समय उन्हें उद्धृत करूँगा ।
मुझे उम्मीद है कि सार्वजनिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित किये जानेकी बात तुम सबको पसन्द आई होगी। अगर तुम्हें 'यंग इंडिया' पढ़नेकी अनुमति हो तो तुम 'यंग इंडिया' के आगामी अंकमें[३] वह सब देख सकोगे जिसके कारण मैंने आन्दोलन