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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

१४. मैं असहयोगको भयंकर युद्ध नहीं मानता। मुझे विश्वास है कि इसमें शहरों के बड़े-बड़े लोग जितना हिस्सा ले सकते हैं उसकी अपेक्षा गाँवोंके भोले किन्तु शान्त लोग अधिक हिस्सा ले सकते हैं । दमन नीतिका आश्रय लिये जानेपर लोग डर जायें और भाग निकलें, इसमें यह भय तो है और यह हँसीकी बात भी होगी; किन्तु इसकी अपेक्षा उन लोगोंसे अधिक भय है जो जेल जानेसे तो नहीं डरते किन्तु जो हिंसा कर सकते हैं; और ऐसे लोगोंसे भयकी अपेक्षा भी बदनामी अधिक होती है। भागनेवालोंके कारण हम बाजी तो नहीं हार जायेंगे; किन्तु हिंसा करनेवाले लोगों से भारत के वातावरण में लोगों के आतंकित होने और अन्तमें स्वराज्यकी बाततक भूल जानेकी सम्भावना मौजूद है ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १२-२-१९२२

१६३. पत्र : देवदास गांधीको

मौनवार [१२ फरवरी, १९२२][१]

चि० देवदास,

मुझे हमेशा तुम्हारी याद आती रहती है लेकिन तुम्हें पत्र लिखनेकी फुरसत ही नहीं मिलती ।

तुम्हारा तार मिला है । मैंने बम्बईसे जो तार दिया था वह तुम्हें मिल गया होगा ।

मैंने आजसे उपवास शुरू किया है। यह शुक्रवारकी शामको छूटेगा । इतना किये बिना तो चल ही नहीं सकता था । सांपकी बाँबीमें हाथ डालना और इस अविनयके वातावरण में सविनय अवज्ञा करना दोनों एक जैसे हैं । मेरे उपवाससे तुम घबराना मत । तुम इसमें मेरा अनुकरण तो कदापि न करना । पीड़ा तो प्रसूताको ही भोगनी पड़ती है। अन्य तो केवल उसकी मदद कर सकते हैं। मुझे भी अहिंसा और सत्य-धर्म- को जन्म देना है इसलिए उपवासादिकी पीड़ा तो मुझे ही भोगनी होगी। तुम सब तो उसके लिए आत्म-शुद्धि करो और निर्धारित कार्य करते रहो । सो तो तुम करते ही हो। इन पापोंमें तुम्हारा कोई भाग नहीं है ।

वहाँ से मुझे खबर बराबर भेजते रहना ।

तुम्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि हरिलालकी सजा कम नहीं हुई है । मुझे [ उसकी सजा कम होनेकी । खबर अच्छी नहीं लगी थी । वह वहाँ प्रसन्न है। मालवीयजी कल बम्बई रवाना हो गये । वे कार्य समितिकी बैठकमें हाजिर हुए थे ।

 
  1. गांधीजीने चौरीचौराको घटनापर प्रायश्चित्तके रूपमें पाँच दिनका उपवास किया था । उपवास रविवार, १२ फरवरी, १९२२ की शामको शुरू हुआ था ।