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रहते हैं । ऐसे लोगोंके पास या तो अपने भरण-पोषण के लायक पैसा होता है या कांग्रेस जरूरत समझती है तो उनको पैसा देकर उनकी सेवा लेती है । यह सक्रिय काम करने- वाला वर्ग जरूरत होनेपर भाषण देने और ऐसे ही अन्य काम करने के लिए अवश्य जायेगा। किन्तु जबतक उसे कोई खास काम न सौंपा जाये तबतक वह सूत कातेगा, रुई पींजेगा और खादी बुनेगा । वह चाहे रुई न भी पींजे और खादी न भी बुने, किन्तु सूत कातनेका काम तो उसे करते ही रहना चाहिए । दिल्लीमें जो प्रस्ताव[१] स्वीकार किया गया था उसमें यह लाजिमी माना गया है और कांग्रेसकी रचनात्मक प्रवृत्ति तो सूत कातना और कतवाना ही है । इसलिए कांग्रेसके स्वयंसेवक और नेता इस क्रियामें जितनी दक्षता प्राप्त करेंगे, लोगोंको उतना ही लाभ होगा। इन दोनों बातों में चालाकी करनेवाले स्वयंसेवकोंके दोष के कारण कांग्रेसको बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। इसके कारण हजारों लोगों की आजीविकामें बाधा पड़ती है । यदि हमें इस कार्यमें दक्ष लोग अधिक संख्या में मिल जायें तो काते जानेवाले सूतकी मजबूती, बारीकी और समानतामें बहुत सुधार किया जा सकता है । किन्तु स्वदेशीमें तन्मय होनेवाले और सूत कातनेमें रस लेनेवाले ऐसे कुशल सेवक हमारे पास बहुत ही कम हैं । इसलिए मेरी समझसे तो कर्मठ स्वयंसेवकोंका पहला काम कातनेकी पूरी शक्ति प्राप्त करना और उसे प्राप्त करके अपने खाली समयका उपयोग कातनेमें ही करना है ।

हममें कष्ट सहन करनेकी शक्ति चाहे कितनी ही क्यों न आ गई हो, किन्तु फिर भी यदि हम भारतको आर्थिक दृष्टिसे स्वतन्त्र करनेकी कुंजी नहीं पहचान सके हैं और उसका उपयोग नहीं करते हैं तो स्वराज्यका द्वार कभी नहीं खुलेगा । हममें ज्ञानपूर्वक कष्ट सहन करनेकी क्षमता आनी चाहिए। हमें जेल क्यों जाना है, यह हमें जान लेना चाहिए। इसलिए जबतक हममें स्वदेशी के कार्यके सम्बन्धमें ईमानदारी नहीं आती, और हम उसका महत्त्व नहीं समझते तबतक हमें स्वराज्य मिलनेकी आशा ही नहीं करनी चाहिए। सच तो यह है कि तबतक हमें स्वराज्य लेनेका हक ही नहीं है क्योंकि तबतक हममें इतनी शक्ति ही न आयेगी कि हम स्वराज्यको चला सकें । स्वयं सूत कातना और दूसरोंसे भी कतवाना यह हमारी सबसे बड़ी प्रवृत्ति है, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है ।

अन्त्यजोंके विषयमें

जो बात खादीके बारेमें सच है वही अन्त्यजों के बारेमें भी है। अस्पृश्यताका निवारण न हो तो स्वराज्य मिल ही कैसे सकता है ? उसे हम ले भी कैसे सकते हैं ? जबतक हम अन्त्यजोंपर प्रभुत्व बनाये रखना चाहते हैं तबतक हमें अपने प्रति किये जानेवाले सरकारके व्यवहारके सम्बन्धमें शिकायत करनेका कोई अधिकार ही नहीं है । ईश्वर तो हम जैसा करते हैं वैसा ही हमें देता है । मनुष्य अशक्त और अज्ञानी है इसलिए वह क्षमा करके न्याय करता है। ईश्वर सर्वशक्तिमान् और सर्वज्ञ है इसलिए वह उचित दण्ड देकर न्याय करता है । यदि हम इस सम्बन्धमें अपनी आत्माको धोखा

 
  1. कांग्रेस कार्य समिति द्वारा ४ नवम्बर, १९२१ को स्वीकृत; देखिए खण्ड २१, पृष्ठ ४३२-३५ ।