पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/४३७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



४१३
टिप्पणियाँ


जो लाभ होता है, मैंने उसके और व्यायाम के सम्बन्धमें काफी नहीं लिखा है। इस पत्रके लेखक सूरतके रहनेवाले हैं। वे लिखते हैं कि सूरतके लोगोंमें उत्साह तो बहुत होता है, किन्तु शरीरसे निर्बल होने के कारण वे जेलके कष्ट और सत्याग्रहियों- पर पड़नेवाले अन्य कष्टोंको सहने के लिए तैयार नहीं हो सकते। वे मारपीटको तो क्या बरदाश्त करेंगे ?

उनकी यह चेतावनी तो ठीक ही है । किन्तु ब्रह्मचर्य का विषय ही ऐसा है कि उसपर बार-बार लिखना कठिन है । फिर मेरी मान्यता है कि ब्रह्मचर्यका उपयोग केवल शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टिसे नहीं होना चाहिए। यह तो पाईकी जगह रुपयेका उपयोग करने के समान होगा। मैंने यह बात मान ली है कि जो लोग स्वराज्य के कार्यक्रमके अन्य अंगोंको आगे बढ़ाने में व्यस्त रहेंगे उनको सहज ही ब्रह्मचर्यकी आवश्यकता प्रतीत होगी ।

ऐसा होनेपर भी ब्रह्मचर्यकी रक्षापर जितना अधिक जोर दें उतना ही कम है । जो मनुष्य ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करता वह मनुष्य नहीं रहता। इतना ही नहीं बल्कि वह पशुत्वसे भी गिर जाता है। पशु तो स्वभावतः ब्रह्मचर्य का पालन करता है । वह स्वादके वशमें नहीं होता और इन्द्रियोंके विलासको भी नहीं जानता । वह मर्यादा के भीतर रहता है। इसलिए अब्रह्मचारी मनुष्यकी जब हम पशुसे उपमा देते हैं तब हम पशुका ही अपमान करते हैं । जो मनुष्य ब्रह्मचर्यका भंग करता है वह अन्तमें नपुंसक हो जाता है । यही कारण है कि हम अंग्रेजी और गुजराती दोनों भाषाओं के अखबारोंमें वीर्यवर्धक ओषधियोंके बड़े-बड़े विज्ञापन देखते हैं। यह हमारे लिए बहुत लज्जाकी बात है । विज्ञापनदाताओंको इतने बड़े-बड़े विज्ञापन देना पुसाता है, यह स्थिति हमारे दुर्भाग्यकी सूचक है । ब्रह्मचर्य मनुष्य जातिका स्वभाव ही होना चाहिए; आत्माका तो है ही । अब्रह्मचारी मनुष्यकी आत्मा मूच्छित होती है। जिसकी आत्मा जाग्रत है, वह अपने शरीरका उपयोग ऐसे कार्यमें कभी नहीं कर सकता जो अत्यन्त मलिन है और जिसके परिणाम बहुत कटु होते हैं ।

विचार उन्नत हों तो मनुष्य के लिए ब्रह्मचर्य का पालन पूरी तरह शक्य और सुगम है । पाठक एक घड़ी एकान्तमें शान्तचित्त होकर विचार करें और ब्रह्मचर्य -भंगकी मलिनताके पूरे चित्रकी कल्पना करें तो क्या उनके मनमें घृणा पैदा नहीं होगी ? किन्तु जब मनुष्य के मनमें मलिन विचार उत्पन्न होता है तब वह पागल बन जाता है । वह शराब पिये बिना ही बेहोश-जैसा हो जाता है और उस बेहोशी-जैसी हालत में विषय-भोगकी मलिन क्रियामें सुख मानता है । वह इस क्षणिक सुखके पश्चात् होनेवाले पिछले कटु अनुभवको भूल जाता है और उसकी दशा पहले जैसी ही हो जाती है ।

ब्रह्मचारी दुर्बल हो ही नहीं सकता। उसका मन, उसका शरीर और उसकी आत्मा, जितना चाहो उतना काम देते हैं । ब्रह्मचारीको पशुबलकी आवश्यकता नहीं है । बहुत से लोग ऐसा मानते जान पड़ते हैं कि ब्रह्मचारी यानी ऐसा आदमी जिसमें बहुत ज्यादा पशुबल हो । ब्रह्मचारीमें शारीरिक कष्टोंको सहन करनेकी असीम शक्ति होती हैं । हम कह सकते हैं कि ब्रह्मचारीको शारीरिक थकान तो होती ही नहीं । ऐसा ब्रह्मचारी कोई विरला ही देखने में आता है।