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टिप्पणियाँ


करके ईश्वरका भजन करना धर्म समझता है तो दूसरा पश्चिम की ओर मुँह करके । एकके धर्म में शिखा रखनेका विधान है, तो दूसरेके धर्म में दाढ़ी रखनेका । फिर भी दोनों एक-दूसरेका सम्मान करते हैं, एक-दूसरेको सहन करते हैं; वे एक-दूसरेसे कोई जबरदस्ती नहीं करते। यदि हिन्दुओं और मुसलमानोंने इस प्रकार सच्चे हृदयसे ऐसा व्यवहार करने की प्रतिज्ञा ली हो तो आजकलके असहयोगी सहयोगियोंपर जबरदस्ती कैसे कर सकते हैं ? अथवा यदि असहयोगी सहयोगियोंपर जबरदस्ती करेंगे तो यह स्पष्ट है कि असहयोगी हिन्दू असहयोगी मुसलमानोंसे जरूर लड़ेंगे । इसलिए जबतक असह- योगी सहयोगियोंको मित्रभावसे जीतने का ही निश्चय नहीं करते तबतक मैं हिन्दुओं और मुसलमानोंमें शुद्ध एकता होना असम्भव मानता हूँ ।

'नवजीवन ' का विरोध

'नवजीवन' के एक प्रेमी वेरावलसे लिखते हैं :[१]

काठियावाड़ में 'नवजीवन' और खादीकी टोपीके विरोधका कारण समझ में आना मुश्किल है । किन्तु श्री अमृतलाल ठक्करपर[२] वेरावलमें जो कुछ बीती थी उसका जिसे स्मरण है उसे ऊपर दी हुई घटनासे कोई आश्चर्य नहीं होगा । मैं तो यह मानता हूँ कि काठियावाड़ में 'नवजीवन' के प्रचारका अर्थ शुद्ध विचारोंका प्रसार है । खादीकी टोपी और खादी के कपड़े काठियावाड़की समृद्धिके चिह्न हैं । यदि छब्बीस लाखकी आबादी प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति औसतन ढाई रुपये का कपड़ा भी पहने और उतनी खादी काठियावाड़ में ही बने तो उससे काठियावाड़ में पैंसठ लाख रुपये बचें। काठियावाड़ के घरों में प्रतिवर्ष इतना रुपया जमा होते रहने से काठियावाड़की अवस्था कितनी सुधर जायेगी इसका हिसाब हर मनुष्य स्वयं लगा सकता है। इस हिसाब से दूसरे आँकड़े भी निकाले जा सकते हैं जो इतने ही सन्तोषजनक होंगे । यदि हम प्रत्येक परिवारमें पाँच सदस्य मानें तो इससे परिवारकी आय प्रतिवर्ष साढ़े बारह रुपये बढ़ जायेगी । जब हम औसत निकालते हैं तब हम जानते हैं कि प्रत्येक मनुष्यको तो उतना रुपया नहीं मिलता जितना उसके हिस्से में आता है, किन्तु पूरे समुदायको तो उतना लाभ होता ही है । इसका अर्थ तो यह हुआ कि यह पैंसठ लाख रुपये का लाभ काठियावाड़के उन निर्धन परिवारोंको होगा जिन्हें पैसेकी जरूरत है, और जिन्हें संकटग्रस्त रहना पड़ता है; अथवा इसका दूसरा अर्थ इस तरीकेसे लगाया जा सकता है कि पैंसठ लाख रुपये का ढेर काठियावाड़ियोंके पास खुला पड़ा है; उसमें से जिसे जितना लेना हो उतना लूटकर ले जा सकता है। ऐसा होनेपर भी यह लूट तो सभ्यतापूर्ण लूट ही होगी । फिर चूँकि इस रुपयेका लोगों में वितरण चरखेकी मार्फत करना होगा, इसलिए यह रुपया उन गरीबों के घरोंमें ही जायेगा जिन्हें उसकी जरूरत है । ऐसी शुभ परिणामकारी खादी, शान्ति और सत्यका प्रचार करनेवाले 'नवजीवन'का विरोध किया जाता

  1. इस पत्रका अनुवाद यहाँ नहीं दिया गया है ।
  2. १८६९-१९५१; भारत सेवक समाज ( सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के सदस्य और दलित- वर्गों और आदिवासियोंके निमित्त काम करनेवाले एक प्रमुख कार्यकर्ता ।