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टिप्पणीयाँ

पड़ेंगी; बल्कि एक ऐसे राष्ट्रको और अधिक पीड़ा देनेसे होनेवाली लज्जा है, जो अपनी स्वाधीनताको दुनियाकी सब चीजोंसे अधिक चाहता है । इस फैसलेका मूल आयरिश देशभक्तोंका प्रचण्ड आत्म-बलिदान ही है । स्वर्गीय राष्ट्रपति क्रूगरने' जब अंग्रेजी साम्राज्यके खिलाफ अपना झण्डा खड़ा किया और उसे आखिरी चेतावनी दी तब उनके साथ उनके मुट्ठी भर अशिक्षित देश बन्धु ही थे । उस समय उन्होंने कहा था, मैं मानव-जातिको थर्रा दूँगा । उनके कहनेका मतलब यह था कि वे हर बोअर पुरुष, स्त्री, और बच्चेको बलिवेदीपर चढ़ा देंगे और एक भी बोअरको गुलामी स्वीकार करने के लिए न छोड़ेंगे किन्तु अंग्रेज बोअर शहीदोंके खूनसे रँगी हुई दक्षिण आफ्रिकाकी रेगिस्तानी भूमिपर खुशीसे घूम-फिर सकेंगे । जब अंग्रेजोंके बन्दी शिविरोंमें बोअर रमणियाँ और बालक मक्खियोंकी तरह मर गये और जब इंग्लैंडकी पिपासा बोअरोंके दिये हुए खूनसे बुझ गई तब जाकर वह झुका । इसी प्रकार आयरलैंड भी गत कई वर्षोंसे मानव-जातिको थर्रा रहा है । और इंग्लैंडने उसकी बात तब मानी जब उसके लिए हजारों आयरिश देशभक्तोंकी नसोंसे खून बहने के बीभत्स दृश्यको देखना असह्य हो गया । मैं निश्चित रूपसे जानता हूँ कि हमारे मनोरथकी पूर्ति कानूनी चतुराई, न्यायके सम्बन्धमें सैद्धान्तिक वाद-विवाद या कौंसिलों और असेम्बलियोंके प्रस्तावोंसे नहीं होगी । दक्षिण आफ्रिका और आयरलैंडकी तरह हमें भी मानव-जातिके हृदयको थर्राना होगा । परन्तु असहयोगी दक्षिण आफ्रिका और आयरलैंड के इतिहासकी पुनरावृत्ति करने के बजाय इन दोनों राष्ट्रोंके सशक्त उदाहरणोंसे अपने विरोधीके खूनका एक भी कतरा न गिराते हुए स्वयं अपना खून बहाने का पाठ सीख रहे हैं । यदि वे ऐसा कर सकें तो उन्हें थोड़े ही दिनों या महीनोंमें स्वराज्य मिल जायेगा । परन्तु यदि वे आँख मूँदकर दक्षिण आफ्रिका और आयरलैंडका अनुकरण करना चाहते हों तो भारतका ईश्वर ही रक्षक है । तब तो मौजूदा पुश्तमें स्वराज्य नहीं मिल सकता । और मैं जानता हूँ कि जिस स्वराज्य-का वचन श्री मॉन्टेग्युने' दिया है वह चाहे कितनी ही नेकनीयतीसे क्यों न दिया गया हो, अन्ततः एक भ्रम और जाल ही सिद्ध होगा । कौंसिलें सशक्त मनके मनुष्य तैयार करने के कारखाने नहीं हैं; और सशक्त मनके मनुष्य उसकी रक्षाके लिए मौजूद न हों तबतक आजादी रोगका घर है ।

स्वराज्य क्या है ?

'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने प्रश्न किया है कि क्या मेरी स्वराज्यकी कोई स्पष्ट कल्पना है । यदि लेखक महोदय 'यंग इंडिया' के पिछले अंक उठाकर देखें तो उन्हें अपने प्रश्नका पूर्ण उत्तर मिल जायेगा । किन्तु मैं यहाँ संक्षेपमें कह दूँ कि स्वराज्यका कमसे-कम अभिप्राय जनताके चुने हुए प्रतिनिधियोंकी इच्छाओंके अनुसार सरकारसे समझौता करना है । अतः यदि कांग्रेस के प्रतिनिधि गिरफ्तार होनेके लिए निरन्तर स्वयं- सेवकोंको भेजते रहकर अपना दावा सच्चा सिद्ध करें तो किसीभी होनेवाले समझौते में

१. एस० जे० पॉल क्रूगर (१८२५-१९०४ ); यून्सवाल्के राष्ट्रपति, १८८३-१९०० ।

२. ई० एस० मॉन्टेग्यु (१८७९-१९२४); भारत-सचिव १९१७-२२ और मॉन्टेग्यू-चैम्सफोर्ड सुधारोंके सह-प्रवर्तक ।