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टिप्पणी
(१) धरना वहीं दिया जाये जहाँका वातावरण पूर्ण अहिंसक हो;
(२) केवल एक निश्चित उम्र से अधिकके जिम्मेदार लोगोंको ही धरना देनेके लिए नियुक्त किया जाये;
(३) धरना देनेका उद्देश्य, भड़काना या कानूनको अवज्ञा करना न होकर प्रश्नके गौरवको बढ़ाना होना चाहिए ।

इसका भी उसी अवधिमें होना आवश्यक नहीं है; क्योंकि यह सामूहिक सविनय अवज्ञा सम्बन्धी प्रस्तावमें आ जायेगा ।[१]

३.स्वयंसेवक,
सामूहिक सविनय अवज्ञाके लिए भरती न किये जायें और न कानूनको अवहेलनाके लिए ही, बल्कि वे सामाजिक, नैतिक और आर्थिक सुधार कार्यके लिए भरती किये जायें।
४.जबतक गोलमेज परिषद् न हो जाये तबतक एतराजके काबिल, विरोधी या उत्तेजित करनेवाली हलचलों की तैयारियाँ मुल्तवी रखी जायें।
५.बम्बई में प्रतिनिधियोंको सभामें जो शर्तें रखी गई हैं उनपर पुनः विचार हो सकता है।

गांधीजी कहते हैं कि धाराएँ ४ और ५ जरूरी नहीं हैं क्योंकि वे १ से ३. तककी धाराओं में आ जाती हैं, किन्तु यदि आगे-पीछे गोलमेज परिषद् के सम्बन्धमें आश्वासनके रूपमें इन्हें देना जरूरी समझा जाये, तो ये काममें लाई जा सकेंगी।

मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७९०९ ) से ।

१५४. टिप्पणी

बलियामें दमन

बलियासे चि० देवदास गांधीने एक पत्र भेजा है । उसमें उसने बलियाके दमनका सजीव चित्र खींचा है। मैं उसे नीचे देता हूँ ।[२] बलिया संयुक्त प्रान्तका एक गरीब जिला है । वहाँके लोग उत्साही, सीधे-सादे और भोले हैं । वे देशभक्त हैं। मैंने कई बार वहाँ जानेका प्रयत्न किया, परन्तु जा नहीं सका। वह बिहारकी सरहदपर है; इससे वहाँके लोग बिहारियोंसे अधिक मिलते-जुलते हैं । दमनसे उनकी जो दशा हुई होगी मैं उसकी कल्पना कर सकता हूँ । उस कल्पनासे मेरा दिल रो उठता है। मैं वहाँ न जा सका, इससे मुझे दुःख होता है । यदि मैं इस वेदनासे पार पा गया तो बलियाको तीर्थ मानकर वहाँकी यात्रा करनेकी इच्छा रखता हूँ। मैं चाहता हूँ कि

 
  1. यह गांधीजी के स्वाक्षरोंमें है ।
  2. यह यहाँ नहीं दिया जा रहा है ।