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घरमें हिंसा
नहीं जानता कि आप अहिंसा तथा अस्पृश्यताके बारेमें भी घोर निराशा अनुभव कर रहे हैं या नहीं। हमारी वर्तमान अवस्था ऐसी है कि हम उतनी ही प्रगति कर सकते हैं जितनी कि इन विपरीत परिस्थितियों में सम्भव है और जबतक हमारी राह रोकनेवाली ये विपरीत परिस्थितियाँ समाप्त नहीं होतीं तबतक तीव्र विकास सम्भव नहीं है । स्वराज्य हमारी कमजोरियोंको दूर करेगा और हमें पर्याप्त प्रकाश और शुद्ध वायु प्रदान करेगा। स्वराज्यकी जो भी योजना हो, उसका लक्ष्य प्रगतिके मार्ग में विघ्न डालनेवाली इन बातों को समाप्त करना होना चाहिए और यह एक ऐसा सवाल है जिसपर सबसे पहले ध्यान देना चाहिए। हमारे देशवासी अधिकाधिक यूरोपीय बनते जायें और चरखेका मजाक उड़ाते रहें, जैसा कि इस विचित्र मद्रास मन्त्रिमण्डलने किया है, इससे कोई लाभ नहीं होगा । इस प्रकारके राष्ट्रीय ह्रासको रोकना होगा। यदि आप 'नवजीवन' में प्रकाशित अपने पूरे लेखको 'यंग इंडिया 'में प्रकाशित कर सकें तो मेरे विचार में यह अच्छा होगा । आप आवश्यक समझें तो उसपर साथ ही कुछ टिप्पणी भी दे दें। मैंने इस पत्रको अनावश्यक रूपसे लम्बा कर दिया है। कृपया कष्टके लिए क्षमा करें।

मुझे अब इस तथ्य के बारेमें कुछ कहने की आवश्यकता नहीं कि आजकल लोगोंको अहिंसक होने के कारण, यदि वे प्रभावशाली भी हैं तो, चुन-चुनकर जेल भेजा जा रहा है। इस पत्र में जो चेतावनी दी गई है, उसके कारण मैं इसे प्रकाशित कर रहा हूँ । इसमें कोई सन्देह नहीं कि हममें कुछ ऐसे लोग हैं जो प्रतिज्ञाबद्ध होनेपर भी आस्था के साथ अहिंसा में विश्वास नहीं करते; अर्थात् वे उन लोगोंकी सहायताको बुरा नहीं समझते जो कि हिंसापर उतारू हो सकते हैं। लगता है, उनका विश्वास है कि अहिंसा के साथ-साथ हिंसा भी चल सकती है और ये दोनों मिलकर देशको लक्ष्यतक पहुँचने के लिए गति दे सकती हैं। ऐसा रुख कपटपूर्ण तो है ही, साथ ही निश्चित रूपसे देश के हित के भी विरुद्ध है। दो परस्पर विरोधी शक्तियाँ साथ-साथ चल सकती हैं, किन्तु वे "दोनों एक ही दिशा की ओर नहीं जा सकतीं" । यदि अहिंसा एक छद्मावरण है या हिंसाकी तैयारी है तो हिंसाका आकस्मिक या जान-बूझकर किया गया विस्फोट, हो सकता है कि परीक्षाके तौरपर तथाकथित अहिंसात्मक नीतिकी अवधि में भी एक महान् लाभ सिद्ध हो। किन्तु भारत जो धर्मयुद्ध कर रहा है वह इससे भिन्न है । ऊपर ईश्वर साक्षी है और वह इतना न्यायशील है कि दुरंगा व्यवहार करने ही नहीं देगा। आज हमारा विश्वास यह है कि भारतको हिंसासे कुछ भी लाभ नहीं होगा और उसे अहिंसा के जरिये ही अपने तीनों लक्ष्य प्राप्त करने होंगे। उसमें हिंसा की सहायता भी नहीं लेनी होगी। इसलिए यदि हमें विजय प्राप्त करनी है तो असहयोगियोंका कर्त्तव्य है कि वे ऐसे प्रत्येक हिंसा-कार्यकी मन और वाणीसे जबरदस्त निन्दा करें जो उनके ध्येयके प्रति सहानुभूति रखकर किया गया हो । वे लोग जो अहिंसापर विश्वास नहीं रखते या हिंसा और अहिंसाको साथ-साथ