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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस सप्ताह स्थानीय सरकारके आक्रमणका लक्ष्य सेलम रहा है। प्रायः सारे कार्यकर्ताओं, वक्ताओं, स्वयंसेवकों, जिनमें मैं और रामस्वामी नायकर भी हैं, को धारा १४४के अन्तर्गत नोटिस दिये गये हैं और कहा गया है कि हम न तो कोई सभा करें और न नशाबन्दीकी ही वकालत करें। सविनय अवज्ञा (वैयक्तिक रूपसे) प्रारम्भ हो गई है, और तीन असहयोगी वकील तथा पन्द्रह अन्य लोग पहले ही आदेश भंग कर चुके हैं और उन्हें गिरफ्तार करके जेलमें डाल दिया गया है । कल तीन और लोगोंने आदेश भंग किया है और बारह गिरफ्तार कर लिये गये हैं । नगरपालिकाके अध्यक्ष और चार वकालत करनेवाले वकीलोंको धारा १४४के अन्तर्गत नोटिस दिया गया है कि वे किसी भी सभामें भाषण न दें। आज मदुरामें धरना देते हुए सत्रह स्वयंसेवक गिरफ्तार कर लिये गये हैं। अबतक कहीं भी हिंसाका सहारा नहीं लिया गया है। मैंने अभी अवज्ञा प्रारम्भ नहीं की है, किन्तु मेरा इस सप्ताह या पहली फरवरीके बाद वैसा करनेका इरादा है।

मुझे अपने में ही हुए परिवर्तनपर कुछ आश्चर्य होता है—मैं १९०८में इंडिया हाउसका क्रान्तिकारी था और अब १९२२ में अहिंसक असहयोगी बन गया हूँ। यह वास्तव में परिवर्तन है, किन्तु यह हृदयका परिवर्तन, शान्तिपूर्वक कष्ट सहनकी क्षमता तथा सामने आये हुए कष्टके प्रति मनका पूर्ण रूपसे तटस्थ होना—ये सब यदि सजीव उदाहरण सामने न होते तो प्राय: असम्भव ही मालूम पड़ते। वर्षों पहले मैं किसी भी निषेधात्मक आदेशपर झल्ला उठता, इस नोटिस को तामील करनेवाले पुलिस के सिपाहीसे तथा उस गैर-कानूनी तथा पागलपन से भरे आदेशको जारी करनेवाले अधिकारीसे बदला लेनेकी प्रतिज्ञा करता । किन्तु आज मेरी उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं है, बल्कि में उन्हें धन्यवाद देनेकी सोचता हूँ कि उन्होंने इस बातका एक और सबूत, चाहे यह सबूत कितना ही तुच्छ क्यों न हो, दिया है कि वर्तमान प्रशासनिक तन्त्र सत्य और न्यायके प्रति कितनी उपेक्षा बरत रहा है कि उसने सज्जन तथा कोमल हृदय मानवको दानवों में परिवर्तित कर दिया है । मेरे हृदयमें भूल करनेवाले इन अधिकारियोंके लिए दया के सिवा और कुछ नहीं है। उन अधिकारियोंके कल्याणकी दृष्टिसे भी इस समय मुझे जो एकमात्र उपाय दिखाई देता है वह कष्ट सहन ही है ।

'नवजीवन' में प्रकाशित एक लेखमें आपने जो यह कहा है कि "आप एक अनिश्चय और निराशाकी स्थितिसे गुजर रहे हैं", इससे विरोधी पत्र नाजायज फायदा उठा रहे हैं। इससे गलतफहमी होनेका अंदेशा पैदा हो गया है। हो सकता है कि एसोसिएटेड प्रेसने अपनी सुविधाके अनुसार उसके कुछ अंश ही उद्धृत किये हों। मुझे लगता है कि आप जरूरतसे ज्यादा निराश हैं । मैं