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चक्कर में

स्वतन्त्रता और संगठनकी स्वतन्त्रताके अपने अधिकारपर लगाये गये |प्रतिबन्धकी अवज्ञापर ही आग्रह रखना था ।

शान्तिपूर्ण सभाओं को बलपूर्वक भंग करना, कांग्रेस तथा खिलाफत के समर्थक समाचारपत्रोंकी तलाशियाँ लेना तथा उन्हें जब्त करना और जन-साधारणको मारना- पीटना पार्षदोंके लिए ऐसे भयानक सत्य थे कि उनके सामने प्रस्तावका अनुमोदन करनेके अतिरिक्त और कोई चारा ही नहीं था । यह बात ध्यान देने लायक है कि सर हेनरी व्हीलरने जो संशोधन पेश किया वह किसी प्रकार भी हठधर्मीसे भरा हुआ नहीं था। उन्होंने इस मामलेकी जाँच के लिए एक गैर-सरकारी समिति नियुक्त करनेका प्रस्ताव किया, किन्तु पार्षदोंने इस समझौतेको अस्वीकार कर दिया जो कि सर्वथा उचित ही था । जिन बातोंको वे प्रत्यक्ष देख रहे हैं, जिन्हें वे साफ-साफ अनुभव कर रहे हैं, उनके बारेमें वे किसी समितिको शंका उठानेका अवसर देने को तैयार नहीं थे । अब बंगाल सरकार जरूर चक्कर में आ गई होगी। यदि वह निर्दोष बन्दियोंको रिहा करती है और अपनी अनमोल विज्ञप्तियोंको वापस ले लेती है तो कांग्रेस और खिलाफत संगठन निश्चित रूपसे अपना आन्दोलन दूने उत्साहसे आगे बढ़ायेंगे । यदि वह उस प्रस्तावको अस्वीकार कर देती है तो उसे नरम दलके समर्थनको अधिकांश रूप में खो देना पड़ेगा । निःसन्देह वह उनके समर्थनके बिना भी रह सकती है, जैसा कि वह वर्षोंसे रहती चली आ रही है । किन्तु उसे निश्चित रूपसे समझ लेना होगा कि भारत में नये युगका उदय हुआ है । अब लोग दमनके आगे झुकनेवाले नहीं हैं । उन्हें अपनी शक्तिका अधिकाधिक ज्ञान होता जा रहा है । वे कष्ट सहनके अधिकाधिक आदी होते जा रहे हैं । जिन लोगोंमें कष्ट सहनकी क्षमता और इच्छा काफी मात्रामें हो, उन्हें संसारकी कोई भी सरकार दमनके जरिये गुलाम नहीं बना सकती ।

जो बात बंगालपर लागू होती है वही बिहारपर भी लागू होती है । बिहारकी विधान परिषद् ने भी अपनी बात कुछ कम स्पष्ट शब्दों में नहीं कही है। संयुक्त प्रान्तकी विधान परिषद् ने भी एक समझौता स्वीकार कर लिया है। किन्तु वहाँ भी वास्तवमें सरकारकी बात नहीं बनी । 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंकी संख्या दूनी कर देनेपर भी भारत के प्रायः सभी भागोंसे आनेवाली भयानक दमनकी समस्त रिपोर्टोको प्रकाशित करना मेरे लिए कठिन हो गया है । अब केवल कैदकी ही बात नहीं रही। अब तो सरकार दमन-सम्बन्धी समाचारोंकी लज्जाजनक उपेक्षा ही नहीं करती, बल्कि उन्हें उतना ही तोड़ती-मरोड़ती भी है ।

सर हेनरी व्हीलरने हमें एक और सुन्दर शब्दावली दी है - "शब्दों और मुहावरोंका अत्याचार"। वे "दमन" का नाम सुनकर भयभीत नहीं होंगे। उनका कहना है कि प्रत्येक कानून दमनकारी होता है और जनताको इस शब्द से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उसे वास्तविकताकी ओर ध्यान देना चाहिए। तो आइए, अब हम वास्तविकता- का ही मुकाबला करें, और 'कानून एवं व्यवस्था इस मुहावरेकी विभीषिकापर विचार करें। सर होर्मसजी वाडियाने मालवीय परिषद् में बड़े ओजरवी ढंगसे लोगों को याद दिलाया था कि बोब सम्राटोंके समय फ्रांस में तथा अन्यत्र बहुतसे काले कारनामे कानून एवं व्यवस्था" के पवित्र नामपर किये गये थे । यदि हम इन दो शब्दों के