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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पत्र प्रकाशित नहीं किये जाने चाहिए तो वह निषेधाज्ञा स्वीकार नहीं की जा सकती थी। क्योंकि ये तो साँस लेने जैसी बातें हैं और किसी व्यक्तिसे यह आशा नहीं रखी जा सकती कि वह साँस लेने, खाने या पीने के लिए दूसरे व्यक्तिसे अनुमति माँगेगा। जिन तीन बातोंका मैंने ऊपर जिक्र किया है वे सार्वजनिक जीवनके लिए साँस, भोजन और पानीकी तरह अनिवार्य हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ९-२-१९२२

१५१. चक्कर में

बंगाल सरकारकी, और कहें तो भारत सरकारकी भी, स्थितिका वर्णन करने के लिए सर हेनरी व्हीलरने हमें एक उपयुक्त शब्दावली प्रदान की है । बंगाल विधान परिषद् में उस प्रस्तावपर होनेवाली बहसको जिसमें सरकारसे माँग की गई थी कि वह सब दमनकारी विज्ञप्तियोंको रद कर दे और उनके अन्तर्गत दण्डित सभी बन्दियों- को रिहा कर दे, उन्होंने "नितान्त अवास्तविक” बताया। वे बंगालके बारेमें सिर्फ उतना ही जानते हैं जितना कि उनके अधीनस्थ कर्मचारियोंने उन्हें बताना उचित समझा। इसके अतिरिक्त वे कुछ नहीं जानते कि वहाँ क्या हो रहा है। अतः उनके लिए बहस " नितान्त अवास्तविक " हो सकती है । वे पचासों पार्षद, जिन्हें वास्तविक स्थितिका प्रत्यक्ष ज्ञान है, सर हेनरीकी वक्तृतासे गुमराह नहीं हुए । बंगाल सरकारने जो रुख अख्तियार किया है, वह उनके लिए " नितान्त अवास्तविक" है । सर हेनरी व्हीलरने देशमें व्याप्त जिस अराजकताका वर्णन किया है, वह केवल उनकी कल्पनाकी सृष्टि थी । पार्षदोंके विचारानुसार देशमें वस्तुतः जो कुछ हो रहा है, उसके लिए बंगाल सरकारको ऐसे कठोर उपाय अपनानेकी आवश्यकता नहीं थी । वे जानते थे कि बंगालमें जैसी अराजकता मौजूद है, वह अनुशासित, विनयपूर्ण और अहिंसात्मक है तथा अधिकारियों के अविचारपूर्ण कृत्योंके कारण आवश्यक हो गई है। सर हेनरी व्हीलरने श्रोताओंको यह समझाने की कोशिश की कि चित्तरंजन दास, मौलाना अबुल कलाम आजाद, श्यामसुन्दर चक्रवर्ती और अब यहाँतक कि प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके वयोवृद्ध अध्यक्ष श्री हरदयाल नागका इरादा भी शरारत-भरा था। लेकिन वे पार्षदों को इस बातकी प्रतीति नहीं करा पाये । जननेताओंके तथा बहुत-से अन्य निर्दोष कार्यकर्ताओं- के बन्दी बनाये जानेका चित्र उनके मनमें था । जनताके इन विश्वस्त नेताओं तथा अन्य अनेक निर्दोष कार्यकर्त्ताओंकी कैदकी बातसे पार्षदोंका मन भरा हुआ था और इसलिए सर हेनरी व्हीलरने परिस्थितियोंका जो भयंकर चित्र खींचा वह उन्हें सर्वथा अवास्तविक प्रतीत हुआ और फलतः सर व्हीलर जो चाहते थे कि इस तरह डरकर पार्षदगण उक्त प्रस्तावको अस्वीकार कर देंगे, वह नहीं हो सका । विचार-स्वातन्त्र्य के लिए पार्षदोंने जो साहसपूर्ण रवैया अपनाया, उसके लिए वे बधाईके पात्र हैं, क्योंकि जिस अराजकताकी शिकायत सर हेनरी व्हीलरने की वह और कुछ नहीं, केवल वाणीकी