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टिप्पणीयाँ

इसके साथ उप-न्यायाधीशका निम्नलिखित मन्तव्य भी संलग्न है :

निम्न हस्ताक्षरकर्ता यह आशा करता है कि वकील उच्च न्यायालयों द्वारा प्रेषित इन विचारोंका पालन करेंगे तथा ऐसा कोई अवसर नहीं आयेगा कि निम्न हस्ताक्षरकर्ताको इस न्यायालय में उन्हें लागू करनेपर बाध्य होना पड़े ।

आवश्यक मामलों पर चर्चा के साथ-ही-साथ एक ऐसे आदेशकी चर्चाके लिए जो केवल कुछ वकीलोंसे ही सम्बन्धित है कुछ स्थान लेते हुए मुझे कोई संकोच नहीं है । खादीकी टोपीके विरुद्ध छेड़ी गई इस लड़ाई में जो तत्त्व छिपा हुआ है वह बहुत महत्त्व रखता है । उससे जाहिर होता है कि विरोधियों द्वारा किस प्रकार निर्दोष किन्तु नैतिक तथा आर्थिक आन्दोलनोंको कुचलनेका प्रयास किया जाता है । मुख्य न्यायाधीश महोदय अवश्य ही अदालतोंसे बाहर लोगोंको अपने सिरपर ऐसा वस्त्र पहननेसे नहीं रोक सकते जिसे सम्पूर्ण भारतमें हजारों उच्चस्तरीय लोगोंने सम्मानजनक मान लिया है । जिन वकीलोंने राष्ट्रीय टोपी अपना ली है, वे भी उसे न्यायालयकी मानहानि करनेके लिए नहीं बल्कि स्वयं अपना सम्मान रखने के लिए पहनते हैं । वे खादी-टोपी इस कारण भी पहनते हैं कि वे अपने धर्म अथवा अपनी राजनीतिको छिपाना नहीं चाहते, फिर चाहे उसका कुछ भी अर्थ क्यों न लगाया जाये । जो व्यक्ति स्वयं अपने सम्मानका खयाल नहीं करता वह दास ही बन जाता है । वकील उच्च न्यायालयके न तो दास हैं, न अधिकारी । वे तो अपनेको जनताकी स्वतन्त्रताका संरक्षक मानते हैं । तो क्या फिर वे स्वयं अपनी स्वतन्त्रताका अपहरण सह लेंगे ? मैं समझता हूँ कि श्री वैद्यने यह तय कर लिया है कि यदि वे अपने गौरव और सम्मानकी रक्षा करते हुए वकालत न कर सकेंगे तो वकालत करना ही छोड़ देंगे । अतः उन्होंने इस आदेश के विरुद्ध लिखित आपत्ति की है और उक्त सब-जजकी अदालत में पेशीमें जाना बन्द कर दिया है । अब वे वहाँ तभी आयेंगे जब निर्णय उनके पक्षमें होगा । मुझे यह भी मालूम हुआ है कि स्थानीय वकील संघ के अन्य सदस्य भी भूषाके सम्बन्ध में अपने सम्मान तथा स्वातन्त्र्यकी रक्षाके निमित्त मुनासिब कार्रवाई करने के बारेमें आपसमें सलाह कर रहे हैं । यह आशा तो की ही जा सकती है कि जो वकील वकालत छोड़ने और जो विद्यार्थी सरकारी स्कूल और कालेज छोड़ने में असमर्थ हैं वे कमसे-कम अपने व्यक्तिगत सम्मान की रक्षा के लिए वैसा ही वीरतापूर्ण संघर्ष करेंगे जैसा विजगापट्टममें मेडिकल कालेज के विद्यार्थियोंने किया है ।

कृपलानी और उनके साथी

बनारस से एक तार मिला है जिससे मालूम होता है कि आचार्य कृपलानी और उनके आश्रम के १५ सदस्य गिरफ्तार कर लिये गये हैं । निरपराधियोंका बलिदान बढ़ता ही जा रहा है । आचार्य कृपलानी एक शिक्षा-शास्त्री हैं और उन्होंने अपनेको

१. जीवतराम वी० कृपलानी (जन्म १८८८ ); शिक्षाविद, राजनीतिज्ञ और १९४६ में कांग्रेसके अध्यक्ष । २२-२