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सम्पूर्ण गांधी वाड्मय


और मानवीय दृष्टिसे देखनेपर यह भरोसा हो जाये कि समस्त आन्ध्र देश अहिंसाका पालन करेगा और कांग्रेस द्वारा लगाई गई अन्य शर्तोंका भी दृढ़तासे पालन होगा । मेरे मनमें यह सन्देह बैठा हुआ है कि देशमें कई स्थानोंमें हाथकती, हाथबुनी खादी पहनने की शर्त का पालन अच्छी तरह नहीं हो रहा है । उसी प्रकार अस्पृश्यता के रोगसे भी हम सभी जगह अभीतक मुक्त नहीं हुए हैं। मेरा तो खयाल यह है कि जेल जानेकी सामर्थ्य हिन्दू-मुस्लिम-सिख- पारसी ईसाई एकताको निबाहने, अस्पृश्यताको धोने और हाथ-कती और हाथ-बुनी खादी पहनने की शर्तोंके पालन करनेकी अपेक्षा बहुत कम महत्त्व की चीज है । यदि हम इन शर्तोंको यथावत् पूरा न करेंगे तो हमें मालूम हो जायेगा कि हमारा जेल जाना कोरी शेखी है और शक्तिका अपव्यय है । जेल जानेका मुख्य हेतु तो आत्मशुद्धि है, सरकारको परेशानी में डालना गौण है । मुझे इस बातका पूरा यकीन है कि सरकार किसी निरपराध, अज्ञात परन्तु शुद्धात्मा व्यक्तिको जेल भेजने या उसे फाँसीपर चढ़ा देने में चाहे किसी प्रकारकी परेशानीका अनुभव न करें किन्तु ऐसे दण्ड देते ही उसे रसातलको गया हुआ समझिए। घनेसे घने अन्धकारको केवल एक ही दीपक नष्ट कर देता । असहयोग एलोपैथी इलाज जैसा नहीं है, यह होमियोपैथी इलाज है । रोगीको दी जानेवाली दवाकी बूँदोंके स्वादका भी पता नहीं चलता। कभी-कभी तो उसे भरोसा ही नहीं होता कि वह कोई दवा भी हो सकती है; किन्तु यदि होमियोपैथीके डाक्टरोंका कथन सत्य माना जाये तो होमियो- पंथीकी बेस्वाद बूँदें या नन्हीं-नन्हीं गोलियाँ एलोपैथीकी दो तोलेकी खूराक या गला रुँध देनेवाली गोलियोंसे ज्यादा ताकतवर होती है । मैं पाठकोंको आश्वस्त करता हूँ कि होमियोपैथी दवाकी अपेक्षा शुद्धिकारक असहयोगका प्रभाव होना अधिक निश्चित है । इसलिए मेरी यह इच्छा अवश्य है कि असहयोगी सभी जगह सविनय अवज्ञाकी तमाम शर्तोंको पूरा करनेका आग्रह रखें। हरएक शख्स फिर वह वकील, उपाधिधारी, परिषद्का सदस्य, कोई भी क्यों न हो, सविनय अवज्ञाका पूरा-पूरा अधिकार रखता है; बात इतनी ही है कि वह मन, वचन और कर्मसे अहिंसाका पालन करता हो, हाथ-कती और हाथ-बुनी खादी अपना पवित्र कर्त्तव्य समझकर पहनता हो, अस्पृश्यताको एक जबरदस्त बुराई मानकर उससे सदा दूर रहता हो और ऐसा मानता हो कि भिन्न- भिन्न जातियों और वर्गोंमें एकता, लोगोंकी खुशहाली, भारतमें स्वराज्य स्थापित करने तथा उसे बनाये रखने के लिए सदैव आवश्यक हैं।

आक्रामक बनाम प्रतिरक्षात्मक

अब आक्रामक सविनय अवज्ञा और प्रतिरक्षात्मक सविनय अवज्ञामें ठीक क्या अन्तर है, यह समझ लेना आवश्यक हो गया है । आक्रामक, उग्र या सरकारको चोट पहुँचानेवाली सविनय अवज्ञा भी अहिंसात्मक है । वह राज्यके उन कानूनोंकी जान-बूझकर की गई अवज्ञा है जिनको भंग करना नैतिक भ्रष्टाचारके अन्तर्गत नहीं आता और जो राज्य के विरुद्ध विद्रोहके रूपमें की जाती है। इस प्रकार राजस्व सम्बन्धी या व्यक्तिगत आचरण सम्बन्धी ऐसे कानूनोंकी जो राज्यकी सुविधाके लिए हों, अवज्ञा करना - - भले ही वे कोई परेशानी पैदा करनेवाले न हों और न उन्हें बदलवाना