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लाला श्यामलाल यह जानना चाहते हैं कि जिन जिलोंमें गिरफ्तारियाँ नहीं की जा रही हैं उनमें लोग अपनेको गिरफ्तार करानेका कोई खास प्रयत्न करें या नहीं । मेरा तो खयाल था कि मैंने पिछले अंकोंमें इस बातको अच्छी तरह साफ-साफ तरीकेसे समझा दिया है। अपने कर्त्तव्यका पालन करते हुए यदि गिरफ्तार होनेका मौका आये तो हमें उसे नहीं टालना चाहिए; परन्तु सरकारको हमें गिरफ्तार करना ही पड़े इस खयालसे हमें अपनी परिधिका उल्लंघन नहीं करना चाहिए। इसे उग्र सविनय अवज्ञा या अपराधमय अवज्ञा कहा जायेगा । अपराधमय अवज्ञाका तो सवाल ही नहीं उठता और उग्र सविनय अवज्ञा एक ऐसा अधिकार है जिसका उपयोग हम आवश्यकता पड़नेपर, पूरी तैयारी कर लेनेके पश्चात् ही कर सकते हैं। इतना ही नहीं, अगर परिस्थितिको देखते हुए सत्याग्रह जरूरी समझा जाये और साथ ही हमारी तैयारी भी हो, तो सत्याग्रह करना हमारा कर्त्तव्य हो जाता है । पर यह उग्र सविनय अवज्ञा, चाहे वैयक्तिक हो या सामुदायिक हमारे पासके तमाम शान्तिमय साधनोंमें सर्वाधिक प्रभावकारी होते हुए भी सबसे अधिक भयावह है। मैं बखूबी जानता हूँ कि देश सामुदायिक रूपसे अभी इस प्रकार अपने स्वत्वोंकी रक्षाके लिए संघर्ष करनेको तैयार नहीं है। इसके लिए तो हमें इससे कहीं अधिक महान् और कठोर अनुशासनकी जरूरत पड़ेगी। हमें कष्टकर, यहाँतक कि बहुत नागवार मालूम होनेवाले कानूनों और अनुशासनका पूरा महत्त्व में तो आध्यात्मिक महत्त्व कहनेवाला था — समझ लेना चाहिए। स्वत्व सूचक सविनय अवज्ञा एक ऐसा अधिकार है जो कठिन तपस्या करने पर ही प्राप्त हो सकता है परन्तु हमारी तपस्या अभी इतनी उच्च कोटिकी नहीं हो पाई है । इसलिए यदि अधूरी तैयारीपर ही हम आक्रामक सविनय अवज्ञा शुरू कर बैठें तो हम एक ऐसी संकटमय स्थिति उत्पन्न कर देंगे, जिसकी न हमने कल्पना की है और न जिसकी हमें आवश्यकता है । इतना ही नहीं ऐसी क्रान्तिसे तो हमें जैसे बने वैसे बचने की कोशिश करनी चाहिए। अतएव हमारा तबतक रुके रहना तो अनिवार्य ही है जबतक कि मैं इस प्रयोगको स्वयं करके न देखूं । यह एक नई चीज है और साधारण विवेक भी यही कहता है कि परीक्षणका फल देख लेने तक रुके रहना उचित है । यदि सामूहिक अथवा वैयक्तिक सविनय अवज्ञा भारतके अन्य हिस्सों में करनेकी कोशिश की जाती है तो मुझे उससे निःसन्देह परेशानी हो सकती है और देशके हितको नुकसान भी पहुँच सकता है। मैं सभी असहयोगियोंका ध्यान कार्य समितिके उस प्रस्तावकी[१] ओर दिलाता हूँ जिसके अनुसार कांग्रेस संगठनोंको आक्रामक सविनय अवज्ञा तबतक न करनेका आदेश दिया गया है जबतक कि मैं वैसा करनेकी अनुमति साफ शब्दों में न दे दूं और मेरी समझमें आन्ध्र देशके सौ गाँवोंके एक समूहको ही मैं एकमात्र अपवाद मान सकता हूँ । किन्तु वहाँ भी मैंने श्रीयुत कोण्डा वेंकटप्पैयाको सूचित कर दिया है कि यदि किसी भी तरह आक्रामक सत्याग्रह टालना सम्भव हो तो मुझे खुशी होगी। मैंने उन्हें यह भी लिख दिया है कि वे उस कार्यक्रमको तभी हाथमें लें जब उन्हें लगे कि कदम वापस लेना नैतिक बलको नीचे गिरानेवाला होगा

  1. देखिए खण्ड २१ ।