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झूठे आरोप

दमन-नीतिका पक्ष मजबूत बनाये रखने के लिए नियुक्त अधिकारियोंने उस नीतिका समर्थन करनेकी तीव्र उत्कण्ठामें निराधार बातें कहने में संकोच नहीं किया है। मौलाना अब्दुल बारी साहब मुझे लिखते हैं कि असहयोग आन्दोलनके सिलसिले में जबसे उन्होंने शुद्धतम अहिंसा-पालन करनेके राष्ट्रीय संकल्पको स्वीकार किया है तबसे उन्होंने न तो हिंसाकी बात सोची, न उसका समर्थन किया और न हिंसाके लिए किसीको उत्तेजित ही किया । वे कहते हैं कि उन्होंने अहिंसा नीतिका प्रतिपादन भी किया और पूरी ईमानदारी तथा हार्दिक रूपसे उसका पालन भी किया। अपंजीयत 'इंडिपेंडेंट ' समाचारपत्र लिखता है :

मौलाना अब्दुल बारीने 'हमदम' वैनिकमें लेख लिखकर सर विलियम विन्सेंटके[१] उस वक्तव्यके उन शब्दों का खण्डन किया है जो उन्होंने निन्दा प्रस्ताव पर हुई बहसके दौरान कहे थे—यानी कि मौलाना हिंसाके हामी हैं। मौलानाका कहना है कि उन्होंने पिछले चार महीनों में एक भी भाषण नहीं दिया । उन्होंने अपने सबसे अन्तिम लिखित भाषणमें, जो उन्होंने मुसलमानोंकी एक सभाके समक्ष पढ़ा था, अहिंसात्मक असहयोगकी जोरदार वकालत करते हुए कहा कि भारतीय मुसलमानोंके पास खिलाफत सम्बन्धी अन्याय दूर करानेके लिए एकमात्र सुलभ उपाय यही है । वे कहते हैं कि मेरे दिलमें यह आशा बनी हुई है कि अहिंसात्मक कांग्रेस और खिलाफत कार्यक्रम ब्रिटिश सरकारको अन्तमें खिलाफत और पंजाब सम्बन्धी अत्याचारोंका निराकरण करने और भारतको स्वशासित राष्ट्रोंके ब्रिटिश कामनवेल्थमें स्वतन्त्र साझेदारकी तरह स्थान देनेपर विवश करेंगे।

अपने खिलाफ लगाये गये आरोपके सम्बन्ध में पण्डित जवाहरलाल नेहरू इस प्रकार लिखते हैं :

कहा जाता है कि संयुक्त प्रान्त सरकारके वित्त सदस्य सर लुडविक पोर्टरने २३ जनवरीको संयुक्त प्रान्तको कौंसिलमें भाषण देते हुए निम्नलिखित बातें कहीं : " अब मैं श्री जवाहरलाल नेहरूके बारेमें कुछ कहना चाहता हूँ । उनका अन्तिम वार प्रान्तके पश्चिमी भागमें कहीं दिये गये एक भाषणके रूपमें था। उन्होंने उसमें राजद्रोह सम्बन्धी खण्डको अर्थात् वैध सरकारके प्रति विरति जगानेवाले तथा उस खण्डको जो महामहिमको प्रजाके वर्गोंके बीच घृणा बढ़ानेसे सम्बन्ध रखता है, शब्दशः दुहराया। उन्होंने यह भी कहा था कि उनके जीवनका उद्देश्य इस विद्रोह -भावनाको तथा सरकारके प्रति तथा उस नफरतको बढ़ाना है।"
 
  1. भारत सरकारके तस्कालीन गृह सदस्य ।