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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्तानी कोई भी इरादतन शैतानियत ओढ़े हुए है। बल्कि मेरा विश्वास तो यह है कि उन्हें अपने कृत्योंका भान नहीं है । यह तो निश्चित है कि उन्हें ऐसा नहीं लगता कि हम कोई गलत काम कर रहे हैं और बहुत मुमकिन है कि उनमें से बहुतेरे तो यहाँतक मानते हों कि बाज मौकोंपर दमन भी एक तरहसे ममतापूर्ण व्यवहारका अंग बन जाता है । आखिर हममें से भी कितने ही लोग अधीर होकर कई बार ऐसे-ऐसे काम कर बैठते हैं जिनका समर्थन आपद्धर्मकी आड़ लिये बिना किया ही नहीं जा सकता ।

इतना लिख चुकनेपर मालूम हुआ कि अली भाई जामा-तलाशी देनेके लिए राजी नहीं हुए और जबरदस्ती जामा-तलाशी ली गई। इसके बाद शायद उन्हें तनहाईकी सजा दी गई है और जो शख्स वहाँ तैनात हैं वे उनके साथ बुरी तरह पेश आते हैं। यदि यह सब सच हो तो मुझे बहुत ज्यादा दुःख होगा। सरकार नामी-गिरामी देश- सेवकों के साथ जेलोंमें पूरी तरह भलमनसाहतका बरताव करेगी और वहाँ उनके साथ किसी प्रकारका अपमान न किया जायेगा ऐसा माननेका आधार था । पर यदि अली-भाइयोंके प्रति किये गये दुर्व्यवहारकी बात सच हो और उसके फलस्वरूप यदि सरकार के खिलाफ उग्रसे-उग्र आन्दोलन उठ खड़ा हो तो इसके लिए खुद सरकार ही जिम्मेवार होगी ।

स्पष्ट है कि ईश्वर असहयोगियोंकी पूरी-पूरी परीक्षा कर लेना चाहता है । मैं जानता हूँ कि अली-भाई बड़े बहादुर हैं और वे इस अग्नि परीक्षामें अविचल रहेंगे और उसमें खरे उतरेंगे। जो असहयोगी कराची जेलमें हैं वे सभी चुने हुए लोग हैं और अपना निपटारा स्वयं करने में समर्थ हैं । तो भी अली-भाइयों, डा० किचलू, पीर गुलाम मजीद तथा उनके साथी कैदियों का जो बेहद अपमान किया जा रहा है उससे लोगोंका खून खौले बिना न रहेगा। परन्तु इस तमाम विवेकहीन उत्पीड़न और उत्तेजनाके बावजूद हमें आत्मसंयमसे काम लेना होगा । हमारी अन्तिम मुक्ति तो अपनी प्रतिज्ञाके यथावत् पालनपर ही अवलम्बित है। यदि यह बात हमें बेधती है तो हमें और भी अधिक अहिंसापरायण होना चाहिए। हम सविनय अवज्ञामें अपनी और भी अधिक शक्ति लगायें और अवज्ञाके लिए आवश्यक शर्तोंको पूरा करनेमें थोड़ा भी विलम्ब न करें। हिन्दू-मुसलमान तथा दूसरी जातियाँ ऐक्य सूत्र में अधिक दृढ़ता से बँध जायें, अब भी जो कुछ विलायती कपड़े हमारे पास पड़े हों उन्हें हम त्याग दें और अधिक खादी बुनने और चरखा कातनेमें लग जायें । हमारी प्रगति तो अपने द्वारा निर्धारित कार्यक्रमके अनुसार चुपचाप काम करते रहनेपर अवलम्बित है, न कि एक क्षण भी व्यर्थकी झुंझलाहट और बकझकमें खोनेपर । जो लोग जेलम हैं उनके साथ होनेवाले दुर्व्यवहारसे हमें परेशान नहीं होना चाहिए। व्यवहारके सम्बन्धमें सरकारने हमसे कोई समझौता नहीं कर रखा है। हमने तो बिना किसी शर्त के अपने शरीर उसको अर्पित कर दिये हैं—वह चाहे तो उनके टुकड़े-टुकड़े कर डाले और यदि ईश्वर हमें शक्ति दें तो, हम इतना होनेपर भी उफतक न करें। चाहे जो हो जाये हमें आपे से बाहर न होना चाहिए।