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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
अभीतक इस तौहीनसे बचे हुए थे । २८ तारीख शनिवारको उन्होंने जामा-तलाशी देनेका हुक्म मानने से इनकार किया। सोमवार ३० को जबरदस्ती उनकी जामा-तलाशी ली गई और उपरोक्त नेताओंको उस बेइज्जती करनेवाले हुक्मको स्वेच्छासे न माननेपर एक महीनेतक काल-कोठरीमें रहनेकी सजा दी गई ।'...
मौलाना मुहम्मद अली इसका विरोध व्यक्त करते हुए चाहते हैं कि उनके साथ भी वैसा ही किया जाये ।
नेतागण जेल अधिकारियोंसे मामलेको सरकारतक पहुँचानेके लिए अन्तिम क्षणतक कहते रहे परन्तु उन्होंने इनकार कर दिया ।

इससे यह प्रकट होता है कि सरकारकी ओरसे हिदायत है कि विवेक और बुद्धिमत्तासे काम करने की नीतिके बजाय जेलके कानून-कायदोंको पूरी सख्ती के साथ वरतनेकी नीति काममें लाई जाये। जरा सोचिए, मौलाना शौकत अली या दूसरे तेजस्वी नेतागण जेलरके तथा एक-दूसरे के सामने प्रायः नंगे खड़े होकर अपनी तलाशी कैसे दे सकते हैं; यह तो उनके नजदीक डूब मरनेकी बात है। पक्के मुजरिमोंकी जामा तलाशी लेना आवश्यक और उपयोगी है, यह मैं समझ सकता हूँ और जेलके ज्यादातर कानून-कायदे केवल उन्हीं लोगोंको ध्यानमें रखकर बनाये गये हैं; परन्तु ऐसे लोगोंसे इन कानून-कायदोंका पालन जबरदस्ती करवाना पागलपनके सिवा और क्या हो सकता है जो राजनैतिक आन्दोलनमें भाग लेते रहने के अतिरिक्त सभ्य नागरिक माने जाते हैं और जिनमें से कुछ लोग तो विख्यात देश-सेवक भी हैं, ऐसे कैदियोंपर इन मौजूदा नियमोंको लादना वास्तविकताकी ओरसे पूरी तौरसे आँख बन्द करके परेशानियोंको न्यौता देना है । जेलकी मामूली मर्यादाका पालन तो कारावास-दण्ड प्राप्त अच्छेसे अच्छे लोगोंसे भी, जरूर कराया जाना चाहिए और खासकर जब वे जान-बूझकर जेल में आये हैं। जेल जीवन में होनेवाले कष्टोंकी उन्हें अपेक्षा करनी चाहिए ही । वे उसके बारेमें शिकायत नहीं कर सकते । यदि वे खुद खूबसूरती के साथ जेलके अधिकारियोंके प्रति सम्मान प्रदर्शित नहीं करते तो उन्हें इसके लिए अवश्य ही बाध्य किया जाना चाहिए। परन्तु ऐसा नहीं कि अनुशासन अपमानका रूप धारण कर ले। असुविधाएँ यन्त्रणा न बना दी जायें और अदब जाहिर करनेका अर्थ 'पेटके बल रेंगना' न बन बैठे । इसलिए असहयोगी कैदियोंको चाहिए कि वे बेड़ियों और हथकड़ियोंकी सजा पाने के खयालसे, कालकोठरी में डाल दिये जानेके भयसे, गोलीसे मार डाले जानेकी आशंकासे अनुशासनके नामपर भी कदापि जेलरके सामने नंगे न हों; जेलके कष्टोंके नामपर मैले, बदबूदार कपड़े हरगिज न पहनें और गन्दा या हजम न होने लायक खाना कदापि न खायें और इसी तरह 'अदब' के नामपर हथेलियाँ पसारकर न दिखायें, दब या दुबककर अपनी जबानसे हरगिज न बैठें और जब जेलका कोई अफसर सामने से गुजरे तब 'सरकार एक'या 'सरकार सलाम'न कहें। और यदि सरकार अब जेलों में हमारी अग्निपरीक्षा लेनेपर तुली हुई है या हमें झुकाने के लिए