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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थी इसलिए उसने उन्हें फिरसे पकड़ लिया। यद्यपि अभी वे मुलजिमकी हैसियत से हवालात में हैं फिर भी उनके रिश्तेदारों, यहाँतक कि उनके लड़केको भी, उनसे मिलने नहीं दिया गया। सरकार जानती थी कि यदि लालाजी समनके जरिये तलब किये गये होते तो वे 'न्याय' से वंचित नहीं रखे जा सकते थे । परन्तु ऐसी स्वाभाविक और शिष्टतापूर्ण कार्रवाई तो पंजाब सरकार के लिए बहुत ही सीधी-सादी कार्रवाई हो जाती । मैं लालाजीको उनकी दुबारा गिरफ्तारीपर बधाई देता हूँ और पण्डित सन्तानम्, मलिक लालखाँ और डा० गोपीचन्दके प्रति उनके समयसे पहले रिहा कर दिये जानेपर, सहानुभूति प्रकट करता हूँ ।

पेंशन या रोका गया वेतन

मैंने अब सामान्य पेंशनोंके सम्बन्धमें सर्व सामान्य नियमोंके अध्याय १५ के खण्ड १ का ३५१वाँ अनुच्छेद प्राप्त कर लिया है। धारवाड़ के श्री जोशीको इसीके अधीन उनकी पेंशनसे वंचित किया गया है। नियम इस प्रकार है :

आगे भी आचरण अच्छा रहेगा, यह सदा पेंशन दिये जानेकी मंजूरीमें एक निहित शर्त है । यदि पेंशन पानेवालेको किसी गम्भीर अपराध करनेके कारण सजा दी गई हो या वह किसी बड़े दुराचरणका दोषी पाया गया हो तो स्थानीय सरकार, भारत सरकार और सपरिषद् राज्य-सचिव पेंशन या उसका कोई अंश रोकने या बिलकुल बन्द कर देनेका अधिकार अपने हाथमें रखते हैं।
इस नियम के अधीन पूरी पेंशन या उसके किसी अंशको रोकने या उसे बन्द कर देने के प्रश्नपर सपरिषद् राज्य-सचिव द्वारा किया गया फैसला अन्तिम और निर्णायक होगा ।

मामूली आदमीकी दृष्टिमें इसे पेंशन कहें, विलम्बित वेतन कहें या और कुछ, है एक ही चीज । यह रकम किसी ऐसे कर्मचारीको नहीं दी जा सकती जो अपने कर्त्तव्य पालनमें अविश्वसनीय साबित हुआ हो या जो सक्रिय सेवाकालकी समाप्तिके बादके अपने आचरणसे पेंशनके अयोग्य सिद्ध हो गया हो । शायद पेंशन पानेवाले कर्मचारीको अपने आचरणके बारेमें सक्रिय सेवामें लगे कर्मचारीकी अपेक्षा और अधिक सावधान रहना जरूरी है । और इसका सीधा-सादा सबब यह है कि जबतक वह काम- पर है, वह निगाहके सामने है और निवृत्त होनेपर विश्वासपर । इस मापदण्डको नजरमें रखते हुए जनसेवककी दृष्टिसे श्री जोशीका काम तनिक भी निन्दनीय नहीं है; इतना ही नहीं उन्होंने तो वही किया है जो कोई भी सम्माननीय व्यक्ति करेगा । कहने का तात्पर्य यह है कि यद्यपि उन्हें अपना समय निवृत्त भावसे आरामके साथ बिताने का हक था किन्तु अपने जीवनकी सन्ध्यामें उन्होंने अपने प्रकाण्ड पाण्डित्यका दिल खोलकर जनताकी सेवामें उपयोग किया। जो सरकार जनमतके प्रति उत्तरदायी हो उसे जनता से भिन्न नहीं माना जा सकता । जनताका हित सरकारका सर्वोच्च उद्देश्य होना चाहिए; इसलिए यदि मौजूदा वस्तुस्थितियोंमें श्री जोशी आज जनताके सुख-