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दिल्ली जेलसे

श्री आसफअलीने दिल्ली जेलसे एक विवरणात्मक पत्र लिखा है । उसके सार्वजनिक हितसे सम्बन्ध रखनेवाले कुछ अंश यहाँ दिये जा रहे हैं :[१]

पाठकों को याद होगा कि दिल्लीमें श्री आसफअलीने बावन स्वयंसेवकोंके साथ सविनय अवज्ञा शुरू की थी।

शेरवानी वकालत करनेसे वंचित

इलाहाबाद उच्च न्यायालयने श्री शेरवानीको, जो अदालतका हुक्म जारी होने के बहुत पहले ही खुद वकालत छोड़ चुके थे; वकालत करनेके अधिकारसे वंचित करके कोई अपनी प्रतिष्ठा नहीं बढ़ाई। स्पष्ट है कि किसीने अदालतको ऐसा कदम उठाने के लिए उकसाया होगा। जिसने भी सरकारको यह सुझाया उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के साथ बदी ही की है। श्री शेरवानीके विरुद्ध की गई कार्रवाईसे एक भी वकील भयभीत होनेवाला नहीं है। इन कार्रवाइयोंसे कुछ वकील इस बातपर शर्मिन्दा हुए होंगे कि हम एक ऐसे न्यायालय में वकालत कर रहे हैं जो एक व्यक्तिको उसके राजनैतिक सिद्धान्तके कारण दण्डित करता है। मेरी रायमें अदालत सार्वजनिक रूपसे इस बातपर ध्यान देनेके लिए मजबूर थी कि असहयोग आन्दोलन एक वस्तुस्थिति है और इसलिए श्री शेरवानी अपने सिद्धान्तोंके कारण नीचेकी अदालत में अपना बचाव करनेके लिए जानेवाले नहीं हैं ।

लालाजी फिर गिरफ्तार हुए

पंजाब सरकार एक साधारण अनुताप भी शोभाके साथ प्रदर्शित न कर सकी । उसे बताया गया कि लालाजी तथा उनके साथियोंको सजा देनेवाले न्यायाधीशने कानूनका ठीक मंशा समझे बिना सजा दे दी है। इसलिए सरकारको उन्हें छोड़नेपर बाध्य होना पड़ा। फिर भी सब लोगोंको उसने एक साथ नहीं छोड़ा; वे आगे-पीछे छोड़े गये और कुछ तो आधी रातको रिहा हुए थे । परन्तु यह सरकारके इस तमाशेके बेहूदेपन की पराकाष्ठा नहीं थी । पराकाष्ठा तो तब हुई जब उसने रिहाईके तुरन्त बाद लालाजीको फिर गिरफ्तार कर लिया। सरकार के इस कामसे जाहिर होता है कि वह गलतीपर पछतानेके बजाय बदला लेनेपर तुली हुई है। उसके पास उन्हें रिहा करने के अलावा और कोई चारा था ही नहीं मगर वह अपनी क्षुद्रतासे भी बाज नहीं आ सकती थी । वह एक क्षणके लिए भी लालाजीको आजाद नहीं छोड़ना चाहती

 
  1. उक्त अंश यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं। उन अंशोंका मुख्य अभिप्राय इस प्रकार था : "जेल आनेके समय आसफ अली काफी बीमार थे और उनका आपरेशन होनेवाला था; किन्तु उन्होंने जेल जानेके स्वर्ण अवसरको खो देना उचित नहीं समझा और आश्चर्य यह रहा कि जेलमें उनकी तबीयत में सुधार हुआ । आसफअली और उनके साथियोंने जेलमें उन विशिष्ट सुविधाओं को लेनेसे इनकार कर दिया जो अन्य भारतीय कैदियोंको नहीं दी जातीं । जेलके कष्टोंको वे सिपाहीके शरीर पर लगे घावोंकी तरह गौरवास्पद मान रहे थे ।