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भारत सरकारको प्रत्युत्तर

और अधिक रचनात्मक कार्योंमें अपनी शक्ति केन्द्रित करें। और यहाँ फिर सरकारने सिर्फ यह कहकर कि आक्रामक ढंगकी सविनय अवज्ञा तबतक के लिए मुल्तवी की जायेगी जबतक कि जेलमें पड़े नेता छूटकर सारी स्थितिपर नये सिरेसे विचार न कर लें, और अपनी सुविधानुसार मेरे पत्रके निम्नलिखित अन्तिम वाक्योंको छोड़कर मेरे साथ अन्याय किया है :

यदि सरकार यह घोषणा कर देती है तो मैं मानूंगा कि वह सचमुच लोकमतका आदर करना चाहती है; और उस हालतमें मैं देशको निस्संकोच- भावसे ऐसी सलाह दूंगा कि वह लोकमतको और भी तैयार करे और भरोसा रखे कि उसकी बदौलत देशकी वे माँगें पूरी हो जायेंगी, जिनमें किसी तरहका परिवर्तन नहीं किया जा सकता । यदि यह सब हो जाये तो आक्रामक सविनय अवज्ञा फिर तभी की जायेगी, जब सरकार अपनी कठोर अहस्तक्षेपकी नीतिका परित्याग कर देगी या भारतकी जनताका जबरदस्त बहुमत जो कुछ चाहता हो उसे स्वीकार न करेगी ।

मैं साहसपूर्वक यह कहता हूँ कि मैंने ऊपर मामलेको जिस तरह पेश किया है उसमें हद दर्जेके युक्तिसंगत और नरंम तरीकेसे काम लिया है।

इसलिए सरकारी विज्ञप्ति के अन्तमें कही गई यह बात ठीक नहीं है कि अब लोगोंको “एक ओर अराजकता और उसके घातक परिणामों तथा दूसरी ओर उन सिद्धान्तोंको कायम रखना जो प्रत्येक समय सरकारके लिए आधारभूत हैं", इन दो स्थितियोंके बीच चुनाव करना है । विज्ञप्तिमें आगे कहा गया है कि “सामूहिक सविनय अवज्ञा राज्यके लिए इतनी खतरनाक है कि उसका सामना कठोरता और दृढ़ताके साथ किया जाना चाहिए। दरअसल लोगोंके सामने अब सवाल यह है कि सामूहिक सविनय अवज्ञासे असंदिग्ध रूपसे जो खतरे हैं उनके बावजूद वे ऐसी अवज्ञाकी नीति अपनायें या जनताकी विधि-सम्मत गति-विधियोंके अवैध दमनको बरदाश्त करें। मेरी तो धारणा है कि जब देशमें कानून और शान्तिके नामपर बेगुनाह लोगोंका माल-असबाब लूटा जा रहा है और उनपर हमला किया जा रहा है तब स्वाभिमानी व्यक्तियोंके किसी भी समुदायके लिए अज्ञात खतरोंकी आशंकासे चुपचाप बैठे रहना और कुछ न करना असम्भव है ।


मो० क० गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७८८५ ) की फोटो नकलसे ।



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