पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/३९०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जिन काली करतूतों का वर्णन किया है, उनकी तुलना में जलियाँवाला बागका हत्याकाण्ड एक साफ-सुथरी कार्रवाई था । इसमें दुःखकी बात यह है कि इस वक्त लोगोंपर गोलियाँ नहीं दागी जा रही हैं या उनकी नृशंस हत्या नहीं की जा रही है, इसलिए हजारों निरपराध मनुष्योंको जो यन्त्रणाएँ सहनी पड़ी हैं वे हमारे दिलको इतना नहीं हिला पातीं कि जिससे देशका हर आदमी इस सरकार के खिलाफ उठ खड़ा हो । मानो इन बेगुनाहोंके खिलाफ चलाई जा रही यह लड़ाई काफी नहीं थी, इसलिए अब जेलों में भी शिकंजे कसे जा रहे हैं । आज कराची जेलमें साबरमती जेलके उस एकाकी कैदीपर और बनारस जेलमें कैदियों के उस समूहपर क्या बीत रही है, हमें कुछ भी मालूम नहीं । ये सब लोग उतने ही बेगुनाह हैं, जितना बेगुनाह मैं अपने-आपको मानता हूँ । उनका जुर्म यही है कि उन्होंने अपनेको राष्ट्रीय सम्मान और गौरवका अभिरक्षक बनाया है । मैं आशा कर रहा हूँ कि ये स्वाभिमानी और विद्रोही आत्माएँ अधिकारियोंका स्वाँग बनानेवाले इन गुस्ताख लोगोंके आगे नहीं झुकेंगी। मैं कहता हूँ कि इन सत्ताधारियोंको कोई हक नहीं है कि वे इन उच्च आत्माओंको अपने सामने प्रायः नंगा हाजिर होनेके लिए मजबूर करें, उन्हें अपनी दोनों खुली हथेलियाँ जोड़कर सलाम करने और गुलामोंकी तरह अपना अदब करने के लिए बाध्य करें या उनसे जबरदस्ती 'सरकार एक है' का नारा लगवायें । ईश्वरसे डरनेवाला कोई भी व्यक्ति यह नारा नहीं लगायेगा, फिर चाहे उसका पाँव काठमें डालकर उसे कितने ही दिनोंतक चौबीस घंटे क्यों न खड़ा किया जाये । बंगालके एक स्कूलके अध्यापकके साथ ऐसा ही सलूक करनेकी खबर आई है ।

मानव स्वभावकी गरिमामें अपने विश्वासके कारण में यह मान लेता हूँ कि लॉर्ड रीडिंग और उनके पत्रका मसविदा बनानेवाले उन तथ्योंको नहीं जानते, जिन्हें मैंने प्रस्तुत किया है या फिर वे विश्वासके वशीभूत होकर कि उनके कर्मचारी तो गलती कर ही नहीं सकते, उन बातोंको सच माननेसे इनकार करते हैं जिन्हें लोग 'ईश्वरीय सत्य' समझते हैं । यदि मेरी कही बातों में जरा भी अतिरंजना हो तो मैं उन्हें उसी प्रकार सार्वजनिक रूपसे वापस ले लूंगा और उनके लिए क्षमा-याचना करूँगा जिस प्रकार अब मैं उन्हें सार्वजनिक रूपसे कह रहा हूँ । लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि जो सरकारसे सम्बद्ध न हों ऐसे पुरुषों या स्त्रियोंके किसी भी निष्पक्ष न्यायाधिकरण के सामने मैं इन आरोपोंके यदि प्रत्येक अक्षरको नहीं तो कमसे-कम प्रत्येक आरोपके सारको, बल्कि उससे भी बहुत-कुछ अधिक, सिद्ध कर देने को तैयार हूँ। मैं श्री मालवीयजी तथा उन दूसरे सज्जनोंसे, जो कि गोलमेज परिषद् बुलानेका श्रेयहीन कार्य कर रहे हैं, अनुरोध करता हूँ कि वे इन आरोपोंकी जाँच के लिए एक निष्पक्ष आयोग बैठायें, जिसके निर्णय के अनुसार मेरी जीत या हार हो ।

लोगोंको जो शारीरिक यातनाएँ दी जा रही हैं, उनके साथ जो पाशविक दुर्व्यवहार किया जा रहा है, उसके कारण मेरे तथा मेरे कितने ही साथियोंके लिए जीवन असह्य हो गया है, और ऐसी दशा में मैं सर्व-साधारणका समय उन बातोंकी तफसील देकर नष्ट नहीं करना चाहता, जिन्हें मैं देशमें प्रचलित कानूनका दुरुपयोग मानता हूँ । परन्तु