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भारत सरकारको प्रत्युत्तर

अब मैं इस कथनको लेता हूं कि सरकारने "गैर-कानूनी दमन-नीति प्रारम्भ कर दी है।" कानून और व्यवस्थाके नामपर सरकारी अधिकारियोंने जो नृशंस कार्य किये हैं, उनपर खेद प्रकट करने या क्षमा माँगनेकी बजाय सरकार अपने उत्तरमें किसी भी प्रकारके "गैर-कानूनी दमन" से साफ इनकार करती है । यह देखकर इस सम्बन्धमें मैं सरकार और जनता दोनोंसे आग्रह करता हूँ कि वे निम्नलिखित तथ्योंपर गम्भीरता से विचार करें। इनकी सचाईके बारेमें तो किसी तरहके शककी गुंजाइश ही नहीं है ।

१. कलकत्ते में इन्टाली मुकामपर सरकारी अधिकारियोंका गोली चलाना और यहाँतक कि लाशके साथ भी हृदयहीन व्यवहार करना;
२. नागरिक रक्षक दल (सिविल गार्ड्स) द्वारा किये अत्याचार जो स्वीकार किये जा चुके हैं;पाशविक
३. ढाकामें एक सभाका जबरदस्ती भंग किया जाना और बेगुनाह लोगोंका टाँग पकड़कर घसीटा जाना, यद्यपि उन्होंने किसी प्रकारका उत्तेजनात्मक काम नहीं किया था;
४. अलीगढ़में स्वयंसेवकोंके साथ इसी प्रकारका सलूक ;
५. लाहौर में स्वयंसेवकों तथा जनतापर किये गये पाशविक और अनुचित प्रहारोंके सम्बन्धमें डा० गोकुलचन्द नारंगकी अध्यक्षतामें काम करनेवाली समितिके निष्कर्ष जो (मेरे विचारसे) निर्णायक हैं;
६. जालन्धरमें स्वयंसेवकों तथा जनताके साथ किया गया दुष्टतापूर्ण तथा अमानुषिक व्यवहार;
७. देहरादूनमें एक बालकपर गोली चलाना और बेरहमीके साथ जबरदस्ती वहाँ एक सार्वजनिक सभाका भंग किया जाना;
८. बिहार सरकार द्वारा स्वीकृत यह तथ्य कि एक अधिकारीने अपने दस्ते के साथ बिहारके कुछ गाँवोंको लूटा-खसोटा और उन्होंने इसके लिए किसीकी इजाजत नहीं ली थी; लेकिन जैसा कि असहयोगियोंका कहना है, उन्होंने एक बागान मालिकके इशारेपर ही ऐसा किया । इसी तरह सोनपुरमें स्वयंसेवकोंको मारना पीटना और कांग्रेसकी खादी तथा कागजोंको जला देना;
९. कांग्रेस और खिलाफत के दफ्तरोंमें आधी रातको तलाशी लेना और गिरफ्तारी करना ।

सरकारी अधिकारियोंकी निरंकुशता और बर्बरता के ऐसे कितने ही 'अचूक प्रमाण' हैं । यहाँ तो मैंने उनके कुछ नमूने ही पेश किये हैं। मैंने जो कुछ कहा है वह सारे देशमें जो-कुछ हो रहा है, उसका दशमांश भी नहीं है; और मैं कहना चाहता हूँ कि भारतके बहुतसे प्रान्तोंमें जैसा अन्धाधुन्ध दमन हो रहा है उसके सामने—यदि हम जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड और रेंगने के आदेशको छोड़ दें तो— पंजाबमें हुए अमानवीय अत्याचार भी फीके पड़ जाते हैं । मेरा खयाल है, इस बातका तथ्योंके आधारपर कोई भी खण्डन नहीं कर सकता। मेरा निश्चित विश्वास है कि ऊपर मैंने