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१४५. पत्र : परशुराम मेहरोत्राको

[ ६ फरवरी, १९२२[१]

चि० परसराम, २[२]

तुम्हारा खत मीला । इलाहाबादमें चरखाका कुछ भी काम होता है क्या ?


बापूके आशीर्वाद

मास्टर परसराम मेहरोत्रा

आनन्द भवन

इलाहाबाद
मूल पत्र (सी० डब्ल्यू ० ५९९४) से ।
सौजन्य : परशुराम मेहरोत्रा

१४६. भारत सरकारको प्रत्युत्तर

[ बारडोली
७ फरवरी, १९२२][३]

वाइसराय महोदय के नाम लिखे मेरे पत्रका जो उत्तर सरकारने दिया है, उसे मैंने बड़े ध्यान से पढ़ा है। मैं स्वीकार करता हूँ कि इस उत्तरमें मामलेसे सम्बन्धित असली बातोंसे जिस तरह बचने की कोशिश की गई है, उसके लिए मैं बिलकुल तैयार नहीं था । मैं सरकारके प्रथम खण्डनको ही लेता हूँ । उत्तरमें लिखा है :

वह (सरकार) जोरके साथ इस कथनका खण्डन करती है कि उसने गैर-कानूनी दमन-नीतिका अवलम्बन किया है, और वह इस बातको भी नहीं मानती कि असहयोगी दलको सभा-संगठनकी स्वतन्त्रता, वाणीकी स्वतन्त्रता और समाचारपत्रोंकी स्वतन्त्रताके बुनियादी अधिकारोंकी प्राप्तिके लिए मजबूर होकर ही सविनय अवज्ञाका सहारा लेना पड़ रहा है।

 
  1. डाककी मुहरसे ।
  2. इन दिनों परशुराम मेहरोत्रा इंडिपेंडेंटमें कार्य करते थे; बादमें आश्रममें हिन्दीके अध्यापक ।
  3. गांधीजीको ६ फरवरी, १९२२ को सरकारी विज्ञप्ति ७ फरवरी (देखिए परिशिष्ट २ ) के अखबारों में देखनेको मिली थी। उसको पढ़नेके तुरन्त बाद ही उन्होंने यह उत्तर बोलकर लिखाया था और तार द्वारा एसोसिएटेड प्रेस, दिल्लीको भेजा था ।