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१४३. पत्र : मु० रा० जयकरको

बारडोली
६ फरवरी, १९२२

प्रिय श्री जयकर,

आपका पत्र और तार दोनों मिले। मैं देख रहा हूँ कि वाइसरायको मेरा पत्र लिखना समितिको अच्छा नहीं लगा। इसका मुझे खेद है । मेरा तो खयाल था कि करीब एक पखवारेतक सविनय अवज्ञा शुरू न करके मैंने अत्यधिक सावधानी बरती है । मैं नहीं समझता था कि वाइसरायको पत्र लिखना भी उचित नहीं था । मैंने जान-बूझकर पत्रको तीन दिन बाद प्रकाशित किया था, जैसा कि आप चाहते थे ।

मैंने अपनी ओरसे इस बातमें भी काफी सावधानी रखी है कि बन्दियों और आन्दोलनके उद्देश्योंके साथ हमदर्दी रखनेवालोंको, मेरी रायमें, क्या करना चाहिए । सम्मेलनके मंत्रियोंको कृपया यह बतला दीजिए ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
स्टोरी ऑफ माई लाइफ

१४४. पत्र : मथुरादास त्रिकमजीको

सोमवार, ६ फरवरी, १९२२

तुम फिर नहीं आये । इसका कारण मैं तुम्हारा आलस्य ही समझता हूँ । जिस बातका निश्चय कर लिया हो उस बातपर अमल करना शुरू कर ही देना चाहिए ।[१]

[ गुजरातीसे ]
बापुनी प्रसादी
 
  1. मथुरादास त्रिकमजीने गांधीजीके सुझावपर हर हफ्ते एक दिनके लिए बारडोली आना स्वीकार किया था ।