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मौन-दिवसकी टिप्पणियाँ

समझते ही हैं कि वैसे तो सारी संविधि-पुस्तिका मेरे सामने है और उसके उन कानूनों को छोड़कर जो विश्वके नैतिक नियमनकी व्यवस्थाका अंग माने जा सकते हैं, बाकी सारे कानून तोड़े जा सकते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ७-२-१९२२

१४२. मौन-दिवसकी टिप्पणियाँ

{{Right|[ ६ फरवरी, १९२२ ][१] मैं समझता हूँ कि दक्षिण आफ्रिका के भारतीय अभी न तो बलिदानके लिए तैयार हैं, और न वहाँ जनताके दिलमें इतनी ज्यादा चुभन ही है । पूर्वी अफ्रिकाके भारतीयोंमें यदि कुछ भी दम है, तो उनसे जहाँतक बन सके और हर रूप में निष्क्रिय प्रतिरोध करना चाहिए —

'इंडिया आफिस द्वारा बाइसरायको पूरी तरह काबू किये बिना चचल उस तरहका वक्तव्य नहीं दे सकते थे—सबसे अच्छा तो यही रहे कि वाइसराय और मॉन्टेग्यु इस सवाल पर इस्तीफा दे दें ।

लेकिन यदि भारतीय सदस्योंमें थोड़ा भी आत्म-सम्मान रह गया है तो उनको भी ऐसा ही करना चाहिए —लेकिन अफसोस है कि फिलहाल मुझे इसकी कोई उम्मीद नहीं ।


पानीका सवाल यहाँ निबट गया है । अछूत लोग आम कुँओंसे पानी भर सकते हैं—

प्रिय चार्ली,

तुम अगर कताईके सम्बन्धमें मेरी टिप्पणीको ठीक नहीं समझते, तो उसको भेजने की जरूरत नहीं। हम लोग उसके बारेमें बात कर लेंगे ।

मोहन

अंग्रेजी प्रति (जी० एन० २६३३) की फोटो नकलसे ।

 
  1. इन टिप्पणियोंमें उल्लिखित चचिलके वक्तव्यके बारेमें सी०एफ० एन्ड्र्यूजने १६ फरवरी, १९२२ के यंग इंडिया में एक लेख लिखा था। गांधीजीने ४ फरवरीको एन्ड्यूजको बारडोली आनेकी दावत दी थी; देखिए इसी तिथिका “ पत्र : एन्ड्रयूजको” । एन्ड्यूजने ८ फरवरीको लिखा था (एस० एन० ७८९६) कि वे जिन-जिन विषयोंपर बात करना चाहते थे, उनपर "सोमवारको "गांधीजीके मौन-दिवसपर - बातें नहीं कर पाये । इसलिए ये टिप्पणियाँ सोमवार, ६ फरवरीको लिखी गई होंगी ।