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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रकारके प्रस्तावकी पूरी तरह उपेक्षा ही कर देती, लेकिन अब यदि सरकार कौंसिलके प्रस्तावकी अवज्ञा करती है तो उसे बर्बरताके नंगे नाचपर उतर आना पड़ेगा और इसलिए मैं यह नहीं कह सकता कि वह क्या करेगी। मैं तो समझता हूँ कि सरकार आजकल जिस किस्मका दमन कर रही है वही इस बातका निश्चित प्रमाण है कि सुधारोंके नामपर बिलकुल मखौल किया जा रहा है । पर कौंसिलकी रायकी उपेक्षा करना तो निश्चय ही स्पष्ट रूपसे दिखा देगा कि सरकार कौंसिलके सदस्योंको वाकई कितनी अहमियत देती है ।

आपने लाला लाजपतरायकी रिहाई और पुनः गिरफ्तारीका क्या अर्थ लगाया है ?

मुझे तो लाला लाजपतरायकी पुनः गिरफ्तारीकी अदूरदर्शितापूर्ण भूलके लिए सरकारकी अक्लपर तरस ही आता है। इससे पंजाब और आम तौरपर भारतके लोगोंका रुख और ज्यादा कड़ा ही बन सकता है ।

क्या आपका खयाल है कि बारडोलीका सामूहिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू होते ही, आपको गिरफ्तार कर लिया जायेगा और क्या हफ्ते भर यहाँ रहनेके बाद आपको यह भरोसा हो गया है कि आपकी अनुपस्थितिमें आन्दोलन ठप्प नहीं होगा ?

यह कहना कठिन है कि मियाद खत्म होनेपर सरकार मेरे साथ क्या सलूक करेगी; लेकिन मैं नहीं समझता कि मेरे गिरफ्तार होते ही बारडोलीकी जनता कन्धे डाल देगी। पर यदि वह सचमुच हारकर बैठ रहती है, तब तो फिर सरकारका मुझे गिरफ्तार करना बिलकुल उचित होगा क्योंकि उसका मतलब होगा कि आन्दोलनमें कमजोरी आ गई है। यदि भारत सचमुच आन्दोलनके लिए तैयार है तो अन्य सभी कार्यकर्त्ताओंकी गिरफ्तारीकी भाँति मेरी गिरफ्तारीके फलस्वरूप भी असहयोगकी कार्र- वाइयोंको और अधिक बढ़ावा मिलना चाहिए और अहिंसाका वातावरण अधिक सुस्थिर बनना चाहिए। मुझे व्यक्तिगत तौरपर इसके बारेमें कोई शंका नहीं है। लेकिन निश्चित तौरपर कोई यह नहीं कह सकता कि मेरी गिरफ्तारी के बाद क्या होगा । मुझमें ऐसी-ऐसी मानवीय और अलौकिक शक्तियाँ आरोपित की जाती हैं; इस बारे में लोगों में इतना अन्धविश्वास है कि कभी-कभी ऐसा लगने लगता है कि मुझे बन्दी बनाना, देश निकाला देना और यहाँतक कि प्राण-दण्ड देना भी सर्वथा उचित ही होगा । मेरे अन्दर अलौकिक शक्तियाँ मौजूद हैं-ऐसा विश्वास वास्तवमें राष्ट्रीय प्रगतिमें बाधक बनता है और विवेकशील लोगोंको सरकारको धन्यवाद देना चाहिए यदि वह मुझे जनजीवनसे अलग कर दे और बादमें स्वयं कोई पागलपन न करे बल्कि न्यायकी भावनासे और आतंकका सहारा लिये बिना काम करने लगे । लेकिन हालकी घटनाओंको देखकर मुझे सरकारसे ऐसी कोई आशा नहीं बँधती ।

बारडोली सम्मेलन [१] द्वारा पास किये गये प्रस्तावको छोड़ दें तो भी क्या आपको इस बातका भरोसा है कि बारडोली सचमुच ऐसा कदम उठानेके लिए तैयार है ? क्या बारडोली शुद्ध खादी तैयार करनेके मामलेमें आत्मनिर्भर बन चुका है ?

 
  1. २९ जनवरी, १९२२ को ।