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१४१. भेंट : 'बॉम्बे क्रॉनिकल' के प्रतिनिधिसे'सीसी

बारडोली
५ फरवरी, १९२२

मैंने इतवारकी[१] सुबह महात्माजीसे भेंट की। वे काफी स्वस्थ और प्रसन्नचित्त दिखाई पड़े और नियमपूर्वक रोजकी तरह कताई शुरू करने जा रहे थे। उनके पुत्र रामदासने चरखा लाकर रख दिया। महात्माजी चरखा चलाते चलाते मेरे प्रश्नोंके उत्तर देते रहे...

प्र० : कांग्रेस कार्य समितिने अब विदेशोंमें किये जानेवाले प्रचारपर इतना जोर क्यों दिया है, और इस प्रकार उसने इस सम्बन्धमें नागपुर कांग्रेसके फैसलेको बदल क्यों दिया है ?

उ० : प्रश्न गलत ढंगसे पूछा गया है। नागपुर कांग्रेसने समाचारोंके प्रसारके रूपमें विदेशों में किये जानेवाले प्रचारको निषिद्ध तो ठहराया नहीं था, और अब कांग्रेस कार्य समितिने मुझे विदेशोंमें समाचारोंके प्रसारकी एक योजना पेश करनेका आदेश दिया है और मैं अपनी सारी अक्ल यह सोचने में लगा रहा हूँ कि विदेशोंमें समाचारोंके प्रसारके लिए देश कष्ट सहनके अतिरिक्त और क्या कर सकता है ?

इस प्रचारको आप कैसे संगठित रूप देना चाहते हैं ?

पहले प्रश्नका उत्तर देते हुए मैंने बतलाया है कि मुझे सोचना यह है कि कष्ट- सहनके द्वारा जितना प्रचार हो सकता है क्या उसके अलावा भी प्रचारके लिए कुछ किया जा सकता है । मेरा अपना खयाल यह है कि कष्ट सहन द्वारा ही सर्वोत्तम और सबसे प्रभावशाली प्रचार किया जा सकता है। फिर भी चूँकि कार्य-समितिने इसका सारा दायित्व मुझे ही सौंप दिया है, इसलिए मैं पूरी ईमानदारीसे इसपर विचार करूँगा और देखूंगा कि इस सिलसिले में अधिक क्या किया जा सकता है ।

लन्दनकी 'नेशन' जैसी प्रगतिवादी पत्रिकाने भी भारतकी परिस्थितिको बड़े ही गलत ढंगसे समझा है और आपके देश-निकालेका सुझाव दिया है। क्या यह तथ्य ऐसा सिद्ध नहीं करता कि आपके आन्दोलनके वास्तविक महत्वके बारेमें इंग्लैंडमें घोर अज्ञान फैला हुआ है और ऐसी परिस्थिति पैदा करनेमें नागपुर कांग्रेसके निर्णयका काफी बड़ा हाथ हैंॽ

मैं ऐसा नहीं मानता। मेरी राय में तो ब्रिटिश जनता और अन्य देशोंकी जनता भी नागपुर कांग्रेसके मुकाबले आज कहीं ज्यादा जानकारी रखती है। लेकिन 'नेशन' पत्रिकाने जैसे अज्ञानका परिचय दिया है, वैसा तो हमेशा सामने आता

 
  1. ५ फरवरी ।