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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ये मशीनगनें अब आतंकित नहीं कर पातीं । न मैं इस विचारसे ही सहमत हूँ कि देश नीचे गिरा है । इसके विपरीत प्रत्येक प्रान्तके जन-जीवनमें शुद्धीकरण के इस आन्दोलनके फलस्वरूप चमत्कारी परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं । एक प्रतिष्ठित मुसलमान मित्र मुझे कल ही बता रहे थे कि किस प्रकार मुसलमान तरुणोंने आलस्य और नास्तिकतापूर्ण विलासिताका जीवन त्यागकर धार्मिक सादगी और उद्यमपूर्ण जीवनको अपना लिया है ।

निश्चय ही हम स्वराज्य पानेके लिए बेचैन हैं । मगर यह तो हमारी लाचारी है । हमारी यह बेचैनी क्या रेलके डिब्बे में ठूँस-ठूँसकर भरे हुए उन मोपलाओंकी बेचैनी-से भिन्न है जो तनिक सी शुद्ध हवा और एक घूँट पानीके लिए तड़प-तड़पकर मर गये ।' विदेशी सत्ताकी इस मृत्यु-वैगनमें हम नैतिक श्वासावरोधसे तड़प रहे हैं और हमारी नैतिक मृत्यु मोपलाओंकी भौतिक मृत्युकी अपेक्षा अनन्त गुना हेय है । यह अवश्य ही एक बड़ा आश्चर्य है कि इतने वर्षोंतक हमने स्वाधीनताकी प्राण-वायुकी जरूरत महसूस नहीं की । फिर भी अब जब हमें अपनी स्थितिका ज्ञान हो गया है, तब क्या हमारा स्वराज्यकी शुद्ध वायुके लिए तड़पना नितान्त स्वाभाविक नहीं है ? मैं नहीं मानता कि स्वराज्य-प्राप्तिकी एक अवधि निश्चित करके मैंने कोई गलत काम किया है । बल्कि अगर यह जानते हुए भी कि लोग यदि वे शर्तें पूरी कर लें जिन्हें सरलता-से पूरा किया जा सकता है, तो स्वराज्य १२ महीने के भीतर अवश्य ही प्राप्त किया जा सकता है, मैं ऐसा न कहता तो वह अनुचित होता । यदि वास्तवमें अहिंसाका वातावरण तैयार हो गया है तो मैं साहसपूर्वक कह सकता हूँ कि हम तत्त्वतः इस वर्षके बचे हुए दिनोंमें ही स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेंगे, भले ही अभी इसका स्वरूप स्थिर होने में और भी दिन लग जायें । समयकी अवधिका निश्चय जनताको भली-भांति जाग्रत करनेकी दृष्टिसे नहीं किया गया था बल्कि वह तो कांग्रेसके कार्यकर्त्ताओंका ध्यान तात्कालिक कर्त्तव्यों और उनकी पूर्तिके प्रभावशाली परिणामोंके प्रति केन्द्रित करनेकी दृष्टिसे किया गया था । अवधि निर्धारित किये बिना न तो हम एक करोड़की धनराशि जुटा पाते, न इतने सारे चरखे चलते, न हजारों रुपयोंकी हाथ-कती खादीका उत्पादन होता और न देशमें दीन-हीन श्रमिकोंके मध्य लाखोंका वितरण ही कर पाते । बंगाल, संयुक्त प्रान्त और पंजाब में सरकार द्वारा तेजीसे गिरफ्तारियां होते रहने के बावजूद जेल जानेवालोंका सामने आते चले जाना हमारे सैनिकत्वका कोई छोटा-मोटा प्रमाण नहीं है । यदि अन्य प्रान्तोंमें भी हिंसापूर्ण दमन-चक्र शुरू किया गया, तो मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि जिन तीनों भाग्यशाली प्रान्तोंका मैंने उल्लेख किया है, वे उनकी तरह चमककर दिखायेंगे ।

कुछ प्रमाण

हम नीचे संयुक्त-प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके वर्तमान मन्त्री श्री जियाराम सक्सेनाका पत्र दे रहे हैं; वह किसी टिप्पणीकी अपेक्षा नहीं रखता ।

१. मलाबारके मोपलाओंने अगस्त १९२१ में विद्रोह किया तथा लूटमार, आगजनी और हत्याकाण्ड किये । १९ नवम्बरको लगभग ८० मोपला रेलसे बेल्लारी जेल ले जाते हुई श्वासावरोधसे मर गये ।

२. इस पत्रके कुछ अंश ही यहाँ उद्धृत किये जा रहे हैं ।