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पत्र : एस्थर मेननको

मुझे उम्मीद है कि बारडोली ताल्लुकेमें एक भी समझदार व्यक्ति जमीनका महसूल नहीं भरेगा, भले ही सरकार उसका माल असबाब, ढोरबर्तन आदि ले जाये और चौथाई[१]भी ठोक दे। हमें कमसे कम इतना तो सहन करना ही होगा ।

कोई यह पूछ सकता है कि यदि सरकार हमारी जमीनें जब्त करके हमें बेघर कर दे तो हम क्या करेंगे ? यदि सरकारने सभ्यतापूर्ण ढंगसे व्यवहार किया तो मेरे खयालसे जमीन जब्त किये जानेका सवाल ही नहीं उठता। लेकिन यदि सरकार ऐसा करना चाहे तो इसमें सन्देह नहीं कि उसके पास ऐसा करने की शक्ति है । हमें बेघरबार होने की स्थितिका सामना करनेके लिए भी तैयार तो रहना ही होगा। लेकिन स्वराज्य- वादीको इस बातका विश्वास अवश्य रहेगा कि स्वराज्य मिलने के बाद उसे उसकी जमीन वापस मिल जायेगी । शस्त्रोंकी लड़ाईमें भी योद्धा इस विश्वासको लेकर लड़ता है कि विजय मिलने पर वह अपनी जमीन प्राप्त कर लेगा । तो फिर इस अहिंसात्मक युद्धका इसके अतिरिक्त और कोई परिणाम कैसे निकल सकता है ? लेकिन लड़ाईके दौरान हमें अपनी जमीनें जब्त किये जानेकी भी पूरी तैयारी रखनी चाहिए।

यह लड़ाई ही आत्मविश्वास अर्थात् ईश्वरपर श्रद्धा रखने की है । आप सबके हृदयों में यह श्रद्धा उत्पन्न हो, ऐसी मेरी कामना है ।

आपका सेवक और शुभचिन्तक,
मोहनदास करमचन्द गांधी

[ गुजरातीसे ]
गुजराती, १२-२-१९२२

१४०. पत्र : एस्थर मेननको

५ फरवरी [१९२२][२]

प्यारी बिटिया,

तुम्हारा प्रसन्नतादायक पत्र मिला । तुम्हारा रुख बिलकुल ठीक है । सरकार जो भी करना चाहे, करने दो। सारी बातोंकी खबर मुझे भेजती रहना। अभी इस मौके- पर मैं यह खबर अखबारोंमें नहीं दे रहा हूँ । तुम जानती ही हो कि मैं बारडोली में सामूहिक सविनय अवज्ञाकी तैयारी कर रहा हूँ । तुमने वाइसरायके नाम मेरा पत्र पढ़ लिया होगा ।

तुम सबको प्यार,

तुम्हारा,
बापू

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडियामें सुरक्षित अंग्रेजी पत्रकी फोटो- नकल तथा 'माई डियर चाइल्ड ' से ।

  1. लगानके चौथे भागके बराबर जुर्माना जो लगान न देनेकी हालत में किसानसे वसूल किया जाता है।
  2. इस पत्र में उल्लिखित " वाइसरायके नाम पत्र ” १ फरवरी, १९२२ को ही लिखा गया था।