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बधाई हुई आशा

माना गया है कि 'काले लोग' इनके पीछे-पीछे चलेंगे। यह सम्भव भी है । किन्तु इतना काफी नहीं है । 'काले लोगों' को भी देश-हितका ज्ञान होना चाहिए। उन्हें भी जागृतिमें भाग लेना आरम्भ करना चाहिए। यदि वे इसमें भाग न लें तो यह उनकी दासताकी अवस्थाका सूचक होगा । उजले और कालेका यह भेद ही समाप्त किया जाना चाहिए। लोग अपने-आपको एक-दूसरेसे ऊँचा मानें, यह असह्य है। एक ईश्वर ही ऊँचा है । हम सब नीचे हैं । यदि ईश्वरके दरबारमें कोई दर्जा होगा तो वह कर्मके अनुसार होगा। जिसने अधिक सेवा की होगी वह ऊँचा होगा और जिसने कम सेवा की होगी वह नीचा होगा । इसका अर्थ यह है कि वहाँ तो सेवक ही सर- दार बनेगा । यदि शूद्र ज्ञानी बन जाये तो उसकी बराबरीका ब्राह्मण दूसरा नहीं । ब्राह्मण तो वही होता है जो अपने ज्ञानका उपयोग सेवामें करता है। यदि कोई भी शुद्ध सेवा-धर्ममें ब्राह्मणका मुकाबला कर सकता है तो ब्राह्मण तो केवल नामका ब्राह्मण रहा । ब्राह्मणमें शौर्य, व्यवहार-कुशलता, और सेवाकी पराकाष्ठा होनी चाहिए; क्योंकि उसमें ज्ञान है । ब्राह्मणसे अपेक्षा यह है कि वह अपने ज्ञानके द्वारा शौर्य, व्यवहार कुशलता और सेवा, इन तीनों गुणोंको सबसे अधिक व्यक्त करे । किन्तु यदि ब्राह्मण कायर, व्यवहार-शून्य और सेवासे रहित होकर सरदारी करने लग जाये तो वह ज्ञानी नहीं बल्कि अहंकारी है । इसलिए बारडोलीके 'उजले लोगों' को काला और ‘काले लोगों' को उजला होना पड़ेगा एवं अन्त्यज शब्द बारडोलीमें न रहे तभी उसकी प्रतिष्ठा होगी ।

इसलिए अब स्वयंसेवकोंको, जिन्हें 'काले लोग' कहा जाता है उन्हें भी धीरे- धीरे आन्दोलनमें लाना चाहिए । अन्त्यज बालकोंको अपनी शालाओंमें प्रविष्ट करना अथवा अन्त्यजोंको अपने कुँओंसे पानी भरने देना ही काफी नहीं है । यदि अन्त्यजों में कोई व्यसन हो तो उनसे प्रेमपूर्वक उसका त्याग करवाना होगा। उनका स्पर्श करना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी उनको स्नान आदिके नियम बताना, उनको मांसाहार छोड़ने के लिए समझाना और उन्हें गोरक्षा-धर्मका पालन करना सिखाना भी है।

स्वदेशीके सम्बन्धमें भी ऐसा ही है । बारडोलीवासियोंका एक क्षण भी व्यर्थ गँवाना सहन नहीं किया जा सकता। स्त्रियों, पुरुषों और बच्चोंका जितना भी समय बचे, वह सब कातने, पींजने और बुननेमें लगाना चाहिए। चरखा घर-घरमें पहुँचना चाहिए। बुनकरोंकी बहुत कमी है; यह कमी दूर की जानी चाहिए। जितने अधिक युवक बुनाईका काम सीखें उतना ही अच्छा है । बारडोली हर प्रकारसे आदर्श ताल्लुका तभी बनेगा जब वहाँ अच्छी खादी सर्वत्र बनने लग जायेगी ।

बारडोलीका एक भी गाँव ऐसा न होना चाहिए जहाँ कांग्रेसका झण्डा न फह- राता हो । ये सब काम स्वराज्य मिलनेके बाद थोड़े ही होंगे। इन कामोंको करना ही स्वराज्य है । जब लोग एक-दूसरेसे सम्बन्ध रखने लगें, एक-दूसरेका आदर करने लगें और अपने बनाये नियमोंको मानने लगें तभी स्वराज्य हो गया ।

शराबकी बुराई बारडोलीमें निश्चय ही है। माना जाता है कि जिन लोगोंको शराबकी बुरी आदत पड़ गई है उनसे उसे छुड़वाना मुश्किल है । किन्तु यह मुश्किल

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