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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे पाप लगा । मैं अपने मनमें अविश्वास लेकर उनके प्रतिनिधियोंसे बात करने बैठा और उन्हीं लोगोंने मेरे मनमें यह विश्वास पैदा किया। बारडोलीके लोग सीधे हैं, भोले हैं, उनको अपने सुख-चैनकी परवाह नहीं । वे धनी नहीं हैं, वे भिखारी नहीं हैं, वे उत्पाती नहीं हैं और वे कायर नहीं हैं । वे झगड़ालू नहीं हैं बल्कि प्रेमी हैं । उनमें आपसके बड़े झगड़े नहीं हैं। उन्होंने अधिकारियोंसे अपने सम्बन्ध मीठे बना रखे हैं। उनकी कोई स्थानीय शिकायतें नहीं हैं। इसलिए उनकी लड़ाई शुरू करनेकी माँग विशुद्ध स्वार्थहीन माँग है। उन्होंने इसकी योग्यता प्राप्त करनेका पूरा प्रयत्न किया है । इसमें उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगाने में कोई कमी नहीं रखी है। वे पूरी तरह स्वदेशीका पालन नहीं कर सके हैं; किन्तु इसका भरसक प्रयत्न कर रहे हैं। उन्होंने अस्पृश्यताका निवारण जिस हदतक किया है उतना भारत के अन्य किसी भी भागमें नहीं किया गया है । इसलिए मैं मानता हूँ कि यदि देशमें किसी ताल्लुकेको इसके योग्य माना जा सकता है तो वह बारडोली ताल्लुका ही है ।

किसी के मनमें यह शंका उठती है कि बारडोलीके लोग सौम्य स्वभावके हैं इसलिए वे जेल जानेसे ऊब जायेंगे, मरने से डरेंगे और जब उनकी माल-मिल्कियत जब्त की जायेगी तब वे हार मान बैठेंगे । मेरा अबतक का अनुभव मुझे बताता है कि सौम्य लोग ही शान्तिसे कष्ट सहते हैं । उत्पाती लोगोंसे कष्ट सहन नहीं किये जाते । वे तो दूसरोंको ही कष्ट देते हैं ।

और क्या यह लड़ाई ही सौम्य लोगोंके लिए नहीं है ? इस लड़ाईका उद्देश्य सौम्य लोगोंको उत्पाती बनाना नहीं बल्कि वीर बनाना है और उत्पाती लोगोंको, उनकी वीरताको कायम रखते हुए, नम्र बनाना है । यदि उत्पाती लोगोंके जेल जाने से ही यह लड़ाई जीती जायेगी तो हमें मानना चाहिए कि हम अभीसे हार गये, क्योंकि तब तो उत्पाती लोगोंकी ही सत्ता चलेगी। इससे तो ईश्वर कमजोरोंका नहीं बल्कि उत्पाती लोगोंका ही सहायक ठहरेगा। इससे यहाँ भी यूरोपकी 'जिसकी लाठी उसकी भैंस ' वाली नीति लागू होगी। क्या अली-भाई, दास, लालाजी और मोतीलालजी इसीके लिए जेल गये हैं ?

हमें तो उत्पात, ढोंग, उद्धतता, मारपीट, झूठ, पशुबल और ऐसे ही अन्य दुर्गुणोंको हटाकर शान्ति, सरलता, नम्रता, सादगी, सत्य और आत्मबलको विजयी बनाना है । इसलिए पहला गुण, जिसकी खोज हमें करनी चाहिए वह यही है जिसे हम सौम्यता कहते हैं । इस सौम्यतापर जब वीरताका रंग चढ़ेगा तब वह चमक जायेगी । मैंने बारडोली के लोगोंसे ऐसे ही कार्यकी आशा रखी है ।

किन्तु बारडोलीने अबतक जितना काम किया है उसे उससे बहुत अधिक करना बाकी है। अभी तो उसे बहुत-कुछ करके दिखाना होगा। मैंने बारडोलीमें दो नये शब्द सुने हैं 'उजले लोग' और 'काले लोग ' ' । 'उजले लोगों में पाटीदार, वैश्य, ब्राह्मण आदि हैं और 'काले लोगों [१]में दुबला आदि जातियां । इस लड़ाईमें 'उजले लोगों' ने और उसमें भी पाटीदारोंने अधिक दिलचस्पी और हिस्सा लिया है। ऐसा

  1. गुजरातीमें " काली परज", उस क्षेत्रकी आदिवासी जातियोंके लिए व्यवहृत एक समूहवाचक शब्द ।