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बधाई हुई आशा

है । मैं मानता हूँ कि मेरा जेल जाना तो केवल आराम और मनमौजीपन है । सरकार मुझे जेलमें ले जायेगी तो मुझे दुःख देगी, इसका मुझे कोई भय नहीं है । दूसरे कैदियोंको तो थोड़ा-बहुत दुःख मिला है। इसलिए उनका जेल जाना तो कुछ हदतक सार्थक था और अब भी सार्थक है । इसलिए मैंने नीचे लिखे विचार प्रकट किये।[१]

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन ५-२-१९२२

१३८. बँधाई हुई आशा

बारडोलीने मुझे बहुत बड़ी आशा बँधाई है। ईश्वर बारडोलीके लोगोंको साहस और सद्बुद्धि दे । जैसे दक्षिण आफ्रिकामें प्रिटोरियाकी मस्जिदमें शपथ ली गई थी,[२]जैसे चम्पारन में मुजफ्फरपुरमें शपथ ली गई थी,[३]जैसे अहमदाबाद के मजदूरोंने नदी- तटपर पेड़ के नीचे शपथ ली थी,[४]जैसे खेड़ाके पाटीदारोंने नडियादमें प्रतिज्ञा की थी,[५]वैसे ही बारडोलीके पाटीदारोंके प्रतिनिधियोंने पहले एक पेड़के नीचे और उसके बाद अन्य लोगोंके साथ सम्मेलनके मण्डपमें प्रतिज्ञा ली है ।

जैसे अबसे पहले की गई प्रतिज्ञाएँ किसी भी तरह पूरी हुईं वैसे ही क्या ईश्वर इस प्रतिज्ञाको भी पूरी नहीं करेगा ? कोई गिरेगा, कोई नया उठेगा, परन्तु क्या अन्तमें जो निश्चय किया है वह पूरा न होगा ? सत्यकी ही जीत होती है और जबतक सत्यके लिए प्राण देनेवाला एक भी मनुष्य तैयार है तबतक सत्यके विरुद्ध चाहे करोड़ों लोगोंका दल हो तो भी जीत सत्यकी ही होती है । यह ब्रह्म वाक्य है। इसमें अपवाद नहीं हो सकता ।

किन्तु वारडोलीका विश्वास करनेमें मैंने भूल नहीं की है। मैं तो भूलें करता ही रहता हूँ और ईश्वर उनको सुधारता ही रहता है । लोग मुझे हजारों बार धोखा दें तो भी मैं उनपर अविश्वास कैसे करूँ ? जबतक मुझे उनपर विश्वास करनेका तनिक भी कारण दिखाई देता है तबतक तो मैं उनपर विश्वास ही करूंगा । अविश्वासका स्पष्ट कारण मिलनेपर विश्वास रखना, यह मूर्खता है । केवल सन्देहके कारण अविश्वास करना उद्धतता और नास्तिकता है । विश्वास के बलपर ही तो नाव तरती है ।

यदि मुझे यह मालूम हो कि कोई मनुष्य मुझे धोखा दे रहा है भी मैं उसपर विश्वास करूँ तो मेरी मूर्खताका कोई पार ही

और फिर नहीं होगा । मुझसे तो बारडोलीके लोगोंने इतने शुद्ध हृदयसे बातें की हैं कि उनपर अविश्वास करना

 
  1. देखिए “ भाषण : सूरतको सार्वजनिक सभामें”, ३१-१-१९२२ ।
  2. देखिए खण्ड ५ ।
  3. देखिए खण्ड १३ ।
  4. देखिए खण्ड १४ ।