पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/३७४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


बारडोलीको सारी तैयारी कर लेनी चाहिए। जहाँ जो कसर रह गई हो उसे दूर कर डाले और प्रत्येक नर-नारी ईश्वरसे यह प्रार्थना करे कि सर्वशक्तिमान् प्रभु, उन्हें जान और मालके नुकसानको सहन करनेकी पूरी शक्ति दे ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ५-२-१९२२

१३७. मेरा सूरतका भाषण

मुझे दूसरोंके और अपने भाषणोंका सार देना अच्छा लगता है और मैं यह जानता हूँ कि मुझमें उसकी क्षमता है । किन्तु मुझे ऐसा अवकाश शायद ही कभी मिलता है। सूरतमें ३१ तारीखको[१] मैंने जो भाषण दिया था उसका सार देने का मुझे अवकाश है और उसको देनेकी मेरी इच्छा भी है।

उस दिन सूरत में कांग्रेस कार्य समितिकी बैठक थी। उस बैठकमें समिति के सदस्य हकीम अजमल खाँ, मियाँ छोटानी, डाक्टर अन्सारी, डाक्टर चोइथराम गिडवानी, श्री कौजलगी और श्री विट्ठलभाई पटेल और मैं उपस्थित थे । इस स्थितिका लाभ उठाकर सूरतके लोगोंकी सभाका आयोजन किया गया था । यह निश्चय किया गया था कि सभामें मुझे नहीं जाना है इसलिए मैं अपने काम में व्यस्त था । इसी बीच भाई दयालजी- ने आकर मुझे खबर दी कि सभामें उपस्थित लोग चाहते हैं कि मैं वहाँ जाऊँ । इसका कारण यह था कि डाक्टर चोइथरामने जरूरत न होनेपर भी सभामें यह बात कह दी कि सम्भव है मैं दस दिनके भीतर पकड़ लिया जाऊँ । इसपर सभाके लोगोंने आग्रहपूर्वक कहा, तब तो हम उन्हें देखना चाहते हैं ।" उनकी इस माँगपर दयालजी मुझसे इस आशयका अनुरोध करने के लिए आये थे और उसे मानकर मैं सभामें गया ।

सामान्यतः मुझे जो कुछ कहना होता है उसकी रूपरेखा मैं पहलेसे निश्चित कर लेता हूँ। किन्तु इस बार तो मैंने कोई विचार ही नहीं किया था । किन्तु जो बात मेरे मनमें पिछले कुछ दिनोंसे इतनी रम रही है वह मेरे मस्तिष्कमें निखर आई और उसे मैंने जितनी स्पष्टतासे पहले कभी नहीं रखा था उतनी स्पष्टतासे सूरतके लोगोंके सम्मुख रखा । यह बात सभी गुजरातियोंके जानने योग्य है, ऐसी मेरी धारणा है |

मैं चाहता हूँ कि मैंने जो विचार प्रकट किये हैं वे विचार सभी लोगोंके हों। इसलिए लोगोंके लाभार्थं सूरतके -अपने उस भाषणका सार देनेकी मेरी इच्छा हो आई है ।

एक समय ऐसा था जब मुझे यह लगता था कि यदि मैं जेल चला जाऊँ तो कैसा अच्छा हो ? किन्तु अब तो मेरी जेल जानेकी इच्छा बिलकुल ही कम हो गई

 
  1. जनवरी १९२२ को।